एक तरफ़ है खड़ी हिमालय सी अडिग चुनौतियाँ,
दूजी ओर विशाल दुखों की असीम गहराईयाँ|
बीच भँवर में फंसा, बस यही सोचता जाऊँ मैं
किस पथ पर पाँव बढ़ाऊँ मैं?
एक तरफ़ है राख पुरानी भस्म हुए सपनों की,
दूजी ओर जले चिंगारी नये भविष्य सृजन की|
अब कपाल पर राख मलूँ या नया दीप जलाऊँ मैं
किस पथ पर पाँव बढ़ाऊँ मैं?
एक तरफ़ कोई गीत सुनाता अमित शान्ति के सुर
की,
दूजी ओर कोई राग है गाता क्रान्ति और समर की|
क्रान्ति गीत के सुर सिमरूँ या राग मल्हार
गाऊँ मैं
किस पथ पर पाँव बढ़ाऊँ मैं?
एक तरफ़ है कलम पड़ी और दूजी ओर पड़ी तलवार,
इधर मिली शब्दों की थाती, उधर शक्ति की है भरमार|
कागज़ पर इतिहास रचूँ या खड्ग उठा रण जाऊँ
मैं
किस पथ पर पाँव बढ़ाऊँ मैं?
-रजत द्विवेदी
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