ओ हिन्द के सिपाही किस ओर जा रहा है? है राह कौन सी तेरी? क्या छोड़ जा रहा है? देखो पड़ा है जग ये असमंजस के भँवर में थक हार कर समर से हैं वीर बैठे घर में| कोई नहीं है दिखता शमशीर लिए रण में सब दिख रहे यहाँ है ज़ंजीरों से बँधे घर में| ओ हिन्द के सिपाही क्या तू भी है उनमे से? बैठे हुए हैं किनारे जो डरे, सहमे से| ओ हिन्द के सिपाही किस ओर तेरा घर है? है राह कौन सी तेरी? कौन सा तेरा नगर है? क्या उस नगर में अब भी हैं गीत वीर गाते शूरता, धीरता की हैं धुन अब भी सुनाते? क्या अब भी कोई माता सुत दान देती है मातृभूमि हेतु शूरों का वरदान देती है? क्या अब भी नस नस में बहती लहू सी ज्वाला? क्या अब भी पीते हो तुम वीर विष का प्याला? ओ हिन्द के सिपाही किस का तिलक करूँ मैं? किस वीरव्रती के सर अब राख मलूँ मैं? ओ हिन्द के सिपाही कोई तो बता ठिकाना है जहाँ बहती कलकल अविरल लहू की धारा| जहाँ आज भी लहू से सब कुमकुम लगाया करते, परहित धर्म निभाने निज रक्त बहाया करते| रण में लिए खड्ग फिर तांडव मचाया करते, रिपु नाश कर विजय का, फिर गान गाया करते| ओ हिन्द के सिपाही है कहाँ जमघ
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ