पंख टूटे हैं तो क्या, हिम्मत
अब भी बाकी है,
आसमाँ ऊँचा है तो क्या, हौसला
अब भी बाकी है|
उन्मुक्त गगन इंतज़ार कर रहा, उड़ान
अब भी बाकी है,
नाम हमारा सभी जानते, पर
पहचान बनानी बाकी है|
दीपक बुझने को आया, अंधियारा
फिर से छाया,
आँधियों से लड़ती जलती दिए में लौ अब भी बाकी है|
घनी रात ये कारी सी है, फिर से
जंग उजियारे की है,
अंधियारे को चीर गगन पर भोर निकलनी बाकी है|
क्षीण पड़ा है शरीर रण में, जान
अभी कुछ बाकी है,
मस्तक पर खड़ा शत्रु है, जंग
अभी भी बाकी है|
नियति से लड़कर अब भी तकदीर बदलनी बाकी है,
काल की छाती पर अपनी भी छाप छोड़नी बाकी है|
-रजत द्विवेदी
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