हे रूद्रदेव हे महाकाल, हे नीलकण्ठ, हृदयविशाल, एक दान अभय का तुम कर दो, एक आग रगों में फिर भर दो| है तुम्हें मालूम सब जो आज है ये हो रहा, राष्ट्र का सम्मान, गौरव रोज़ है यूँ खो रहा| है न कोई राम अब तो जो लडे़ अभिमान से, दूर किसी कोने में छुपकर सबका पौरुष सो रहा| राष्ट्र चेतना को जगा कर, राम नाम अजर कर दो| दहक उठे शोले चिंगारी, वो आग रगों में फिर भर दो ||क|| हे आशुतोष हे विश्वनाथ, रामेश्वरम तुम बैद्यनाथ, बस इक तुम्हारी निगाह से, था हुआ काम भी भस्मसाथ | आज फिर से एक बार वो नेत्र तीसरा तुम खोलो, क्यों हुए हम असहाय यहाँ, क्या हुआ हमारे संग बोलो| ना बचा सकते लाज यहाँ, नपुंसक समाज है बना हुआ, ना लड़ सके बांकुरे बनकर, वीरों वाली अब बात कहाँ| खोलो अपना नयन प्रलय का, तेज पुंज प्रकाश कर दो, नश्वर शर में प्रखर आग भर, जीवनकीर्ती अमर कर दो ||ख|| हे ओंकार तुम वीर शंकर, नटराज हो तुम हो प्रलयंकर, भर दो रग रग वीरता,वर दो हो समर में धीरता | हम जीत सके जीवनरण को, हो अपनी जननी के सपूत| कर्मयोग ही लक्ष्य रहे, वीर पिता के कहलाये पूत| मातृभूमि हो सर्वश्रेष्ठ, राष्ट्रप्रेम हो हमें विशेष, राष्ट्रद्रो
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ