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Showing posts from October, 2017

वो आग रगों में फिर भर दो

हे रूद्रदेव हे महाकाल, हे नीलकण्ठ, हृदयविशाल, एक दान अभय का तुम कर दो, एक आग रगों में फिर भर दो| है तुम्हें मालूम सब जो आज है ये हो रहा, राष्ट्र का सम्मान, गौरव रोज़ है यूँ खो रहा| है न कोई राम अब तो जो लडे़ अभिमान से, दूर किसी कोने में छुपकर सबका पौरुष सो रहा| राष्ट्र चेतना को जगा कर, राम नाम अजर कर दो| दहक उठे शोले चिंगारी, वो आग रगों में फिर भर दो ||क|| हे आशुतोष हे विश्वनाथ, रामेश्वरम तुम बैद्यनाथ, बस इक तुम्हारी निगाह से, था हुआ काम भी भस्मसाथ | आज फिर से एक बार वो नेत्र तीसरा तुम खोलो, क्यों हुए हम असहाय यहाँ, क्या हुआ हमारे संग बोलो| ना बचा सकते लाज यहाँ, नपुंसक समाज है बना हुआ, ना लड़ सके बांकुरे बनकर, वीरों वाली अब बात कहाँ| खोलो अपना नयन प्रलय का, तेज पुंज प्रकाश कर दो, नश्वर शर में प्रखर आग भर, जीवनकीर्ती अमर कर दो ||ख|| हे ओंकार तुम वीर शंकर, नटराज हो तुम हो प्रलयंकर, भर दो रग रग वीरता,वर दो हो समर में धीरता | हम जीत सके जीवनरण को, हो अपनी जननी के सपूत| कर्मयोग ही लक्ष्य रहे, वीर पिता के कहलाये पूत| मातृभूमि हो सर्वश्रेष्ठ, राष्ट्रप्रेम हो हमें विशेष, राष्ट्रद्रो