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Showing posts from November, 2018

इंकलाब और इश्क़

मकबूल आज फिर इश्क़ का फसाना होगा, फना फिर से इंकलाब का दीवाना होगा। एक बाघी आज फिर से काफ़िर हुआ है, थोड़ा परेशान तो बेशक ये ज़माना होगा। आज फ़िर रिवाजों को किसी ने चुनौती दी है, अब इतना तो शोर शहर में ज़रूर उठेगा। कल तक जो बंधा था तम की ज़ंजीरों में, अब उसकी आज़ादी पर चर्चा मनमाना होगा। आज छलक उठेगा मैकदे में जाम इश्क़ का, शराब का नशा अब बेईमाना होगा। ये इश्क अपने मुल्क से है या किसी शख़्स से न जाने, पर इस इश्क़ का कायल सारा मैखाना होगा। इंकलाब और इश्क़ अब जो दोनों साथ हुए, तो ज़ाहिर है इस बाघी का दुश्मन ज़माना होगा। कुछ दीवारें ढहेंगी, थोड़ी सियासत भी ना खुश होगी, सारे शहर में उठते फुगान का कोई पैमाना ना होगा। - रजत द्विवेदी

हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर..

सफ़र पर निकला एक मुसाफ़िर , हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर... आलम से ही है घूम रहा , अपनी ही कज़ा को ढूंढ रहा , जो कुछ भी रहा इनके दर्मियां , वो एक अंजान सफ़र ही था। इस जग में भटकता रहा मुसाफ़िर , हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर.. रिश्ते जोड़े , नाते जोड़े , कभी दिल टूटा , कभी दिल तोड़े , कुछ मीत बने , कुछ यार हुए , कुछ से फिर कई तकरार हुए। मिलता बिछड़ता रहा मुसाफ़िर , हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर... घर छोड़ा , घरवाले छोड़े , शोहरत के लिए नाते तोड़े , यूं भटक भटक कर शहरों में , जीने की किश्तें जुटा रहा। किश्तों में जीता रहा मुसाफ़िर , हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर... फिर कभी मिला कोई ऐसा , जो रहा ज़िंदगी के जैसा , पर उसका भी साथ छूट गया , एक और आशियां टूट गया। हर पल यूं टूटता रहा मुसाफ़िर , हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर... लो छोड़ जगत बैराग लिया , जग मोह जाल से भाग लिया , फिर भटकता रहा सेहरा में , सब से नाता फिर तोड़ दिया। लेकिन बैरागी बनकर भी , थी हांथ लगी बस रेत मुसाफ़िर... आई फ़िर मौत जब उससे मिलने , कुछ नहीं हांथ फिर उसके था , था छूटा अब सब कुछ उससे ,