उन्नत दक्खिन एशिया की धरती है, जिसने सुभाष पाया तुमको। गदगद है स्वयं मां भारती भी, जिसने था गोद में खेलाया तुमको। थी अनुरागी वह माता तुम्हारी जिसने था सुभाष जाया तुमको। और बड़भागी हूं मैं जिसने आदर्श अपना पाया तुमको। हे वीर लाडले भारत के, भारत का जब तक नाम रहे, भारत के लोगों के मन में तब तक तेरा सम्मान रहे। दुनिया के चारों कोनों में गूंजे तेरा उज्ज्वल इतिहास। था कोई नरसिंह ऐसा भी जिसने जीता सबका विश्वास। खिल उठे सभी का रोम रोम, आंखें चमके ज्यों प्रखर सोम। जब नाम लिया जाए "सुभाष", पाषाण हृदय बन जाए मोम। मन में सबके उन्माद उठे, एक स्नेह भरा संवाद उठे। आज़ाद हिन्द पुकारूं तो एकता का भयंकर नाद उठे। मां भारती के बंधन काटे। जग में मां को सम्मान दिया। मां अब भी रोती है छुप कर जो जग ने तुम्हारा अपमान किया। था जीवन मरण रहस्य ही तो कब जान सका तुमको था कौन। तुम इंकलाब चिल्लाते थे जब जब रहता था विश्व मौन। सारे धर्मों को एक किया और महिलाओं को भी बल दिया। आज़ाद हिन्द की सेना में हर एक बाशिंदा गर्व से जिया। पर हाल अभी बुरा देखो, हर युवा है भटक
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ