तीर नहीं तलवार नहीं, कोई बरछी और कटार नहीं कोई ज़हर नहीं, ना ख़ार कोई, कोई ज़ंगलगा हथियार नहीं एक कलम मेरी बलशाली है, खाली जाता ना वार कभी| कलम से बढ़कर तेज़ कभी तलवारों में भी धार नहीं| जब जब काग़ज़ पर स्याह बहे,लहू से कलम इतिहास रचे पीकर गरल का घूँट कलम, हो जाती है सदा को अमर अजय कलम अनल संचार करे,भरती शरों में शक्ति अभय क्रान्ति की चिंगारी सुलगाती,कलम तेरी सदा को जय| मधुपान सभी करते निस दिन जब मदिरालय में उजियाली है तब विष पीकर बैठी मेरी कलम बड़ी मतवाली है मद में होकर चूर सभी जब वक्त बिताया करते हैं तब मेरी ये कलम क्रान्ति का दीप जलाया करती है| और कभी फिर कलम मेरी लिखती है गीत प्रेम के भी अल्फाज़ों का लिए सहारा लिखती है जज्बातों को भी इंकलाब और इश्क दोनों ही मेरी कलम की है पहचान नित नित लिखती बीज सृजन का,सृष्टि में डाले नई जान| -रजत द्विवेदी
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ