Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2018

सृजन की रात...

नभमंडल आज पुकार उठा, लो एक नया हुंकार उठा। तारों का फिर अंबार लगा, चंदा में भी अंगार उठा। चलती हैं तेज हवा देखो, छट रहा बादल घना देखो। रौशनी प्रचण्ड हो आई है, तम से अब रार मचाई है। कण कण ने तीव्र स्वास लिया, आंधी में भी जलता है दिया। सुर नभ में जाग उठे देखो, सब निश्चर भाग उठे देखो। चंदा,जुगनूं सब सूर्य हुए, अंधकार सभी के दूर हुए। पूनम हुई अमावस की निशा, हैं जाग गई चारों दिशा। आया है समय निर्वाण का, पल है अब नए निर्माण का। जागी है तिमिर में लौ देखो, चढ़ गई सभी की भौ देखो। सबने अब मन में ठानी है, अब तो मशाल जलानी है। इस भीषण काली रात में अब एक भोर नयी जगानी है। कल होगा नया प्रभात जग में, भर जाएगा नया प्रकाश नभ में। चर अचर सभी सजीव होंगे, जीवित फिर से निर्जीव होंगे। जग में होगा फिर नया सृजन, होंगे सुखी सब मानव जन। हर तरफ प्रगति की चले लहर, खुशनुमा हो जाए सम्पूर्ण दहर। - रजत द्विवेदी

अटल जी के अंतिम विचार...

टूटी सांसों की लय तो क्या? कंठ सूख गया बेजल हो तो क्या? शर क्षीण होता है अब तो क्या? हो काल स्वयं आया लेने मुझको तो काल से अब हो भय कैसा? एक वो भी दिवस कभी आया था, जब मैंने जन्म यहां पाया था। एक ये भी दिवस आज आया है, ईश्वर ने मुझे बुलाया है। सब काज पूर्ण कर लिए यहां, अब मुझको भी तो जाना है। ईश्वर ने मुझे बुलाया है, उसके द्वारे भी जाना है। हो भले आज नश्वर ये शर, मैं रहूं सदा सबके हिय घर। मेरी प्रचंडतम आग प्रखर, हरदम करेगी उजियाला घर घर। मैं एक अमिट विचार बनकर, हर माथे पर छा जाऊंगा। तुम भूलोगे जब जब मुझको, हर बार याद तुम्हें आऊंगा। जब जब पथ पर थक बैठोगे, मैं राह नई दिखलाऊंगा, हर बार तुम्हारे दिल में मैं, उम्मीद का दीप जलाऊंगा। - रजत द्विवेदी

कीर्ति..

कीर्तियां बटोर कर लाया हूं, अम्बर को आज सजाने को। अगनित स्वर मोल लिए मैंने जयगीत सुरों को गाने को। जुगनू को मीत बनाया है, चारू से रार मचाने को। ले ली मशाल कर में मैंने नभ में क्रान्ति लिख जाने को। देखो अब क्या क्या कर सकता हूं मैं जगती में आग लगाने को। तम में प्रकाश भर जाऊंगा। नभ में जयकार लगाऊंगा। इस इंकलाब की बेला में, चिंगारी कर में ले आऊंगा। जब जब ये तिमिर गहराएगा, जब कहीं शशि छिप जाएगा, मैं बनकर एक शक्तिपुंज सा तारों में दीप जलाऊंगा। - रजत द्विवेदी

जागृति

आओ जयगान करें सबका  वीरता बखान करें सबका। बल पर अभिमान करें अपने  खुद से गुणगान करें खुद का।  जग फिर पुकारता है हमको  ध्येय का ध्यान धरें अपना।।१।। आया है वक़्त जागरण का  दिखलाने को करतब रण का।  प्यासी शमशीरें तड़प उठी  पीने को रक्त फिर दुश्मन का।  गज सम सब वज्र चिंघाड़ रहे  संघोष हुआ पुनःजागरण का। । २। । देखो अब रैन बेताब हुई  हर चिंगारी अब आग हुई।  जो कल राख के ढेर सी थी   शिव मस्तक चढ़ फिर जाग उठी।  कुमकुम तिलक का क्या सोचूँ अब  जब माथे पर शिव की भस्म मली। ।३ । ।   नभभेदी जो जयकारा है  वह विजयुद्घोष हमारा है।  संकल्प ह्रदय में धारा है अब विजय ही लक्ष्य हमारा है।  उतंग शिखर पर लहराता  परचम वो तिरंगा प्यारा। ।४ । । हो चाहे चारु ग्रहित नभ में  या शक्ति नहीं हो दिनकर में।  या कि तिमिर भी गहराया हो  तारे भी न हो अम्बरतल में। लेकर सहारा जुगनुओं का  हम करें उजाला घर घर में। ।५ । । है वक़्त आज फिर कातिब हुआ  बैठा लिखने को इतिहास नया।  है कलम स्याह में भरी लहू  है इंकलाब से ह्रदय भरा।  हैं देख रहे अम्बर