आओ जयगान करें सबका
वीरता बखान करें सबका।
बल पर अभिमान करें अपने
खुद से गुणगान करें खुद का।
जग फिर पुकारता है हमको
ध्येय का ध्यान धरें अपना।।१।।
आया है वक़्त जागरण का
दिखलाने को करतब रण का।
प्यासी शमशीरें तड़प उठी
पीने को रक्त फिर दुश्मन का।
गज सम सब वज्र चिंघाड़ रहे
संघोष हुआ पुनःजागरण का।।२।।
देखो अब रैन बेताब हुई
हर चिंगारी अब आग हुई।
जो कल राख के ढेर सी थी
शिव मस्तक चढ़ फिर जाग उठी।
कुमकुम तिलक का क्या सोचूँ अब
जब माथे पर शिव की भस्म मली।।३।।
नभभेदी जो जयकारा है
वह विजयुद्घोष हमारा है।
संकल्प ह्रदय में धारा है
अब विजय ही लक्ष्य हमारा है।
उतंग शिखर पर लहराता
परचम वो तिरंगा प्यारा।।४।।
हो चाहे चारु ग्रहित नभ में
या शक्ति नहीं हो दिनकर में।
या कि तिमिर भी गहराया हो
तारे भी न हो अम्बरतल में।
लेकर सहारा जुगनुओं का
हम करें उजाला घर घर में।।५।।
है वक़्त आज फिर कातिब हुआ
बैठा लिखने को इतिहास नया।
है कलम स्याह में भरी लहू
है इंकलाब से ह्रदय भरा।
हैं देख रहे अम्बर से सुर
फिर खोज रहे हैं राम यहाँ।।६।।
लो वीर एक और अंतिम सुधि
लो वीर पुनः प्रण विजय की।
जीवनरण फिर तुझको पुकार रहा
सुध लो अब अपने तन मन की।
जयकार सुनो अपनी नभ से
खोजो अब मंज़िल जीवन की।।७।।
-रजत द्विवेदी
Comments
Post a Comment