Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2017

शांतिदूत

देखो विचारक तो ज़रा,है आज कितना शोभता। ये राज है ध्रितराष्ट्र का ,है आज सुन्दर लग रहा । मानो घिरा फूलों से हो,हो कोई बाग महक रहा। मानो चमकता हो वो नभ,सूर्य के प्रकाश सा।। १॥ क्यों ना भला हो आज शोभित,वो राज कुरु की सभा। मिलने स्वयं नारायण ही, जब दूत बनकर आगया । लेकर संदेसा मैत्री का,केशव पहुंचे थे वहाँ । अभिमान से फूला हुआ, बैठा सुयोधन था जहाँ।। २॥ बड़भागी है ये विदुर जो, आज कृष्ण मोह में आ गया। है एक प्रियतम प्रभु का,नर नारायण में समा गया। वाह रे भीष्म भाग तेरा, तू नारायण को पा गया। विदुर के संग मिलकर तू भी,नाथ कृपा को पा गया।।३॥ करते हैं अब आरम्भ वर्णन उस सुन्दर दृश्य का। जिसमें  दिखा था सब जनो रूप भीषण कृष्ण का। नाथ ने दिखला दिया था रूप वो विराट तब। मूढ़ मति सुयोधन ने चाहा उन्हें लूँ बांध जब ।।४॥ मांगने को पांडवों का हक़ थे केशव आ गए। शांतिदूत बनकर सभी से शान्ति-संधि चाहते। मांगते बस पांच गाँव,हित सभी का हैं चाहते। पांडवों की ओर से,थे मित्रता ही मांगते।। ५॥ पर मति से मूढ़ वो सुयोधन था खड़ा हुआ। चूर था  घमंड में, हठ पर था अड़ा हुआ। बोलता न दूंगा मैं तो एक पग भी