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Showing posts from April, 2019

कातिब..

कातिब ये लिखे अब कहानी कौन सी? अब बची है भला इश्क़ की निशानी कौन सी? अब बची है चिंगारी कौन सी इंकलाब की? सूरत बदलती दिख रही है चिराग़ की। उठी नहीं अब तक एक भी आग जिस्म में, ना इश्क़ गहरा हुआ, ना हम ही डूबे उसमें। ना वजूद को ठेस लगी, ना दिल पर बात आई, जाने बगावत की हारी हुई कौन सी बिसात आई? कातिब किसकी लिखे जिंदगानी कौन सी? फ़ैज़ की या लिखे भगत की कहानी कौन सी? ना कलम को पता, ना कातिब को इल्म है, स्याह उड़ेल कर छोड़नी है काग़ज़ पर निशानी कौन सी? - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/kaatib-ye-likhe-ab-khaanii-kaun-sii-ab-bcii-hai-bhlaa-ishk-pa1t4

सूरमा की पहचान

अंत निकट हो भले मनुज जीवन का, भय विकट हो भले ढेर होते इस तन का। लेकिन संबल ना छोड़ो अपने मन का, दिखलाओ जग को बल अपने जतन का। अंबर कब केवल बस तम का होता है? या कि बस केवल चंदा का ही होता है? जगमग होते हैं अगणित कई सितारे, कुछ चमके सूर्य से, कई टूटकर हारे। लेकिन नभ में हर हारा हुआ सितारा, ध्रुव बनकर फिरता रहता है आवारा। उसको देखे बिन जग ये कहां चलता है, गर टूटे तो जग अपनी मुराद करता है। कब थककर बैठा कभी सूरमा रण में? बहता है लहू खौलता हुआ कण कण में। डगमग होते हों भले ही पांव कभी भी, धीरज खोता है नहीं वो वीर कभी भी। राही गर कभी हो हार जाए राहों से, कैसे वो गहेगा मंज़िल अपनी बाहों से। थककर जो बैठ जाते हैं पंथी जग में, मिलते हैं उन्हें बस कांटे ही पग पग में। तुम राही अपनी मंज़िल पर ध्यान लगाओ, थककर बैठो इससे अच्छा मर जाओ। आओ जब भी तो ख़ुद उमंग ही लाओ, जल, थल, अंबर को मंत्रमुग्ध कर जाओ। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/ant-niktt-ho-bhle-mnuj-jiivn-kaa-bhy-viktt-ho-bhle-ddher-tn-pd89u

इस सुबह उस उफक़ पर.......

इस सुबह उस उफक़ पर जब अफताब इश्क़ का आया होगा, हर किसी की ज़िंदगी में इश्क़ बरसाया होगा। है इधर ये छांव जो क्या तुमको भी है मिल रही, या कि बस मेरे ही घर को धूप आज आई नहीं। क्या कभी तुमको भी इश्क़ ने इतना तरसाया होगा? इस सुबह उस उफक़ पर जब अफताब इश्क़ का आया होगा। क्या कभी तुमको मिली वो ठंडी सबा इस सहर की, जिसको अरसे से भेजा करता था मैं तेरे नाम पर। मुझको अब तक ना मिला पैग़ाम तेरे मिलने का, क्या कभी इस क़दर किसी का दीदार तुझे तड़पाया होगा? इस सुबह उस उफक़ पर अफताब इश्क़ का आया होगा। आज भी चाहत मुझे है बस तेरे इक नाम से, आज भी खोता सुकूं हूं बस तेरे ही नाम पर। मुझको मिलता ही नहीं है एक भी पल चैन का, क्या कभी किसी के खयाल ने तुझको भी नींद से जगाया होगा? इस सुबह उस उफक़ पर अफताब इश्क़ का आया होगा। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/subh-us-uphk-pr-jb-aphtaab-ishk-kaa-aayaa-hogaa-hr-kisii-kii-o3hoi

मैं "दिनकर"

हूं निमिष मात्र मैं निमिष कथा है मेरी, छोटा सा हूं मैं सूर्य, छोटी विभा है मेरी। मैं ज्योतित करता हूं शब्दों का मेला, जब भी काग़ज़ पर है दवात उड़ेला। आता जो भी नैसर्गिक विचार लिखता हूं, दिनकर हूं, दिनकर सा ही मैं दिखता हूं। काग़ज़ पर लफ्ज़ों का अंबार लगाया, हर बार कलम का मैंने ज़ोर दिखाया। सत्ता, सियासत, प्रेम, करुणा की कहानी, मैंने हर एक कथा थी ख़ुद से बखानी। जीवन के हर एक रंग को रूप दिया है, मैंने सूरज को प्रभा का दान दिया है। निष्ठुर मन को भी है मैंने पिघलाया, निर्मोही को है प्रेम करना सिखलाया। बांधी मैंने डोरी राखी की हांथो में, ना बांटा कभी स्नेह को दो पाटों में। भाई का भाई से है मेल कराया, बहनों के माथे पर शुभ तिलक सजाया। मैं कवि सूर्य सम गतिमान चलता हूं, शब्दों के काग़ज़ पर मैं बाण चलता हूं। मेरा निसर्ग जब हुआ उदित गर्भ विभा के, चमका मैं जग के उज्जवल कनकशिखा पे। मुझको ना बांध सका कोई बंधन में, बल ना कोई भी साध सका तन मन पे। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/huun-nimiss-maatr-main-nimiss-kthaa-hai-merii-chottaa-sa