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Showing posts from April, 2018

क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ...

बिखरे बिखरे अक्षर हैं, बिखरे से स्वर हैं हर स्वर में एक अलग भाव है, हर अक्षर की अलग बनावट है बोलो इन स्वरों को जोड़ कर मैं क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव क्रान्ति का है हिय में एक इंकलाब की चिंगारी जो सुलग उठती रग रग में करने को सृजन की तैयारी बोलो भर कर स्याही में आग प्रखर क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव प्रेम का है हिय में एक ख्वाब छिपा इन आँखों में एक अंजान को खोज रहा ये चंचल मन सारे जग में बोलो गाने को मिलन स्वर क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव धर्म का है मन में सौहार्द प्रेम हो जन जन में ना कोई किसी का बैरी हो जब सकल जग में सब प्रेमी हों बोलो गीता रामायण का ज्ञान लिखूँ क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव है मन में बैरागी का जग मोह सभी के त्यागी का फिरते रहने को वन वन में प्रकृति के परम अनुरागी का बोलो जग की मोह माया छोड़ नया क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| -रजत द्विवेदी 

काल अभी तुम ठहरो ज़रा....

काल अभी तुम ठहरो ज़रा  कुछ काम अभी तक बाकी हैं| कुछ कर्ज़ चुकाने बाकी हैं कुछ फ़र्ज़ निभाने बाकी हैं| काल अभी तुम ठहरो ज़रा कुछ दान धरम अभी बाकी है| कुछ परहित कर्म अभी बाकी है  कुछ मुनज धर्म अभी बाकी है| काल अभी तुम ठहरो ज़रा कुछ सजदे करना बाकी है  माँ-बाप और ईश्वर के आगे  नतमस्तक होना बाकी है| काल अभी तुम ठहरो ज़रा कुछ दिल्लगी करनी बाकी है  एक इश्क में डूबना बाकी है  फिर ख़ुद ही उभरना बाकी है| काल अभी तुम ठहरो ज़रा कुछ याद भुलानी बाकी हैं| कुछ ख्बाव देखने बाकी हैं  फिर दिल तुड़वाना बाकी है| काल अभी तुम ठहरो ज़रा अभी कुछ कहानियाँ बाकी हैं| कुछ किस्से सुनने बाकी हैं  कुछ गीत सुनाने बाकी हैं| काल अभी तुम ठहरो ज़रा एक जंग अभी तक बाकी है| ख़ुद से ही हारना बाकी है  ख़ुद से ही जीतना बाकी है| काल अभी तुम ठहरो ज़रा  कुछ काम अभी तक बाकी हैं| तुझसे हारना बाकी है| तुझको ही हराना बाकी है| काल अभी तुम ठहरो ज़रा कुछ नाम करना बाकी है| इतिहास के पन्नों पर अपनी  पहचान बनानी बाकी है| -रजत द्विवेदी 

दानवीर

दान धरम का मूल मंत्र है शुभ फल देने वाला|  सभी कष्ट,दु:ख पीड़ाएँ और विपदा हरने वाला|  दान धरम करते जो निस दिन,सुखी वही होते हैं|  परहित और उपकार हेतु अपना स्वयस्व देते हैं| वीर सूर वो नहीं समर में जो भीषण लड़ता है| शत्रु दलों को हरा युद्ध में कीर्ति अर्जित करता है| वीर वही सच्चा है जो दानी है, परित्यागी है| परहित को जो दान करें, वो मनुज बड़ा भागी है| रंतिदेव हो या कि दधीचि, या कि कर्ण बलशाली| दानवीर ये सबसे बढ़कर, परित्यागी हितकारी| जब जब जग में दानवीर को याद किया जाता है| इन्ही पुन्य विभूतियों का नाम याद आता है| रंतिदेव ने दिया दान निज कर से अन्न की थाल| तथा दिया दधीचि ने परहित अपनी अस्ति का जाल| दानवीर निकला राधेय जो दिया कवच कुण्डल है | होकर लहू लुहान स्वयं है किया दान अमर है| सच है एक न एक दिन सबको त्याग करना पड़ता है| परहित के लिए इस जग में स्वयं जलना पड़ता है| ऐसे ही नहीं होते इस जग में कीर्ति गाने वाले| दूसरों की प्रशंसा में कुछ गीत सुनाने वाले| जग में सबसे पूजित वही है, जो दानी, त्यागी है| करता जो परार्थ कर्म है, वो ही बड़भा

रूके रहेंगे, कहोगे जब तक..

रूके रहेंगे, कहोगे जब तक  झुके रहेंगे, सहेंगे तब तक  प्रतीक्षा में अब भी बैठे हैं  मिल ना जाये न्याय जब तक| मगर बताओ सहे कब तक  घात जो हर दिन लगता रहता है  कहो चुप हम रहें कब तक  सम्मान को जो हर दिन ठेस लग रही है| औरत, लड़की, बच्ची-किसी को ना बख्शा  हर किसी की अस्मिता लूटी जा रही है  एक समाज जो कभी इंसानों का था  आज हैवानों का जमघट बनता जा रहा है| कहो आखिर कहाँ गई इंसानियत  हर बात को तो मज़हब का रंग चढ़ा दिया  कहो क्या मोल लगाया है जिंदगियों का  सियासत में सब कुछ दाव पर लगा दिया| कहो ये व्यापार देखे कब तक  इंसानियत की हार सहे कब तक  गुहार लगाते रहेंगे, विरोध करते रहेंगे  मिलेगा नहीं न्याय जब तक| -रजत द्विवेदी 

आसमान से ऊँचा......

आसमान से ऊँचा क्या है?कौन समुद्र से गहरा?  कौन भूमि से भारी जग में?कौन जल से पतला?  कौन सूर्य से भी ज्यादा चमक रहा इस जग में?  कौन डूब कर गिर जाता है घने काले गर्त में?  कौन यहाँ पर अमर हो जाते?कौन यहाँ नश्वर है?  कौन यहाँ पर सदा हारते?कौन यहाँ अजर है?  आसमान से ऊँचा जग में स्वाभिमान है नर का और समुद्र से गहरा जग में विशाल सागर प्रेम का| भूमि से भी भारी जग में पाप,कपट और छल है| जल से भी पतला इस जग में ज्ञान का गंगाजल है| सूर्य से भी ज्यादा चमकता मनुष्य का कर्म है| और डूबा देता जो गर्त में धर्म नहीं अधर्म है| सच्चा शूरवीर जगत में सदा सदा अमर है| मूढ़मती पथहीन मनुज तो निश्चय ही नश्वर है| यहाँ हारते सदा वही जो संबंधों से डरते हैं | जो समाज से संबंध बना सके, वो ही मनुज अजर है| -रजत द्विवेदी 

कहानी नहीं मर सकती...

हो जाते दो एक लतीफ़े फ़ना सियासत वाले  या खो जाते हैं चन्द किस्से प्रेम प्रसंगों वाले  शायद गुम हो जाते होंगे गीत प्रशंसा वाले  मगर वीरता की कहानियाँ कभी नहीं मर सकती| खो सकते हैं रुप स्वरूप या सुर ताल किसी कविता के  बिखर बिखर कर गुम हो सकते छन्द किसी के सुर के  शायद दोहे और चौपाई भी न बँध पाते होगें  मगर अलंकृत काथा वीर की कभी नहीं मर सकती| लिखी कभी जो वीर कहानी,वीर कथा कभी रण की  नरमुण्डों की माला डाले बीर बाकूँरे नर की  या कि लिखा बखान कभी जो वीरों के परिजन का  त्याग,प्रेम,और सहनशक्ति का,निष्ठा अचल अविचल का  तो शायद तुम समझ सकते हो कितना यह दुष्कर है  कि लिख दें हम कुछ शब्दों में जो त्याग सदा अमर है  कहो भला कैसे वीरों की गाथा मिट सकती है?  वीर बाकूँरों की कहानी कभी न मर सकती है| -रजत द्विवेदी 

कहानी लिख रहा हूँ मैं...

सुनकर अपने दिल की पुकार    चन्द अल्फाज़ों को ले उधार  कोरे काग़ज पर स्याह उड़ेल देता हूँ जज्बातों को उतार भरकर कलम में चिंगारी  कर रखी सृजन की तैयारी  कुछ इसी तरह से हर पल मैं  एक नई कहानी लिख रहा हूँ मैं| कभी चन्द किस्से बचपन के  या कुछ लतीफे अल्हड़पन के  या कोई किस्सा यौवन का  या कि बखान जीवन रण का  कैसी भी कोई कहानी हो  जो जीवन की अमित निशानी हो  कलम उतार कर काग़ज पर  एक कहानी लिख रहा हूँ मैं| हर रोज़ हारता जीतता हूँ  हर अनुभव से कुछ तो सीखता हूँ फिर लेकर सहारा शब्दों का  कागज़ पर अनुभव लिखता हूँ यूँ नित दिन काग़ज कलम लिए  शायद कुछ अलग मैं दिखता हूँ  चूँकि हर दिन जो सीख है मिलती  उन पर कहानी लिख रहा हूँ मैं| -रजत द्विवेदी 

यथार्थ

तिमिर में गुम था मैं   प्रकाश की उम्मीद लगाया बैठा   अंधकार के क्षीण होने का इंतज़ार करता   आशाओं और निराशाओं से घिरकर   ख़ुद के मन को टटोलता   अपने जीवन के वजूद को खोजता   मैं गुम था यथार्थ की तलाश में | सत्य और असत्य के भंवर में फँसा   धर्म और अधर्म की नयी व्याख्या खोजता   मित्रता और प्रेम की पहचान करता   कभी मोहरहित बैराग धारने को सोचता   जगत की समस्त रीतियों को चुनौती देता   चहु ओर फैले पाखंड के अंधियारे में   मैं गुम था यथार्थ की तलाश में | -रजत द्विवेदी