बिखरे बिखरे अक्षर हैं, बिखरे से स्वर हैं हर स्वर में एक अलग भाव है, हर अक्षर की अलग बनावट है बोलो इन स्वरों को जोड़ कर मैं क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव क्रान्ति का है हिय में एक इंकलाब की चिंगारी जो सुलग उठती रग रग में करने को सृजन की तैयारी बोलो भर कर स्याही में आग प्रखर क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव प्रेम का है हिय में एक ख्वाब छिपा इन आँखों में एक अंजान को खोज रहा ये चंचल मन सारे जग में बोलो गाने को मिलन स्वर क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव धर्म का है मन में सौहार्द प्रेम हो जन जन में ना कोई किसी का बैरी हो जब सकल जग में सब प्रेमी हों बोलो गीता रामायण का ज्ञान लिखूँ क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| एक भाव है मन में बैरागी का जग मोह सभी के त्यागी का फिरते रहने को वन वन में प्रकृति के परम अनुरागी का बोलो जग की मोह माया छोड़ नया क्या गीत लिखूँ, क्या राग लिखूँ| -रजत द्विवेदी
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ