दान धरम का मूल मंत्र है शुभ फल देने वाला|
सभी कष्ट,दु:ख पीड़ाएँ और विपदा हरने वाला|
दान धरम करते जो निस दिन,सुखी वही होते हैं|
परहित और उपकार हेतु अपना स्वयस्व देते हैं|
वीर सूर वो नहीं समर में जो भीषण लड़ता है|
शत्रु दलों को हरा युद्ध में कीर्ति अर्जित करता है|
वीर वही सच्चा है जो दानी है, परित्यागी है|
परहित को जो दान करें, वो मनुज बड़ा भागी है|
रंतिदेव हो या कि दधीचि, या कि कर्ण बलशाली|
दानवीर ये सबसे बढ़कर, परित्यागी हितकारी|
जब जब जग में दानवीर को याद किया जाता है|
इन्ही पुन्य विभूतियों का नाम याद आता है|
रंतिदेव ने दिया दान निज कर से अन्न की थाल|
तथा दिया दधीचि ने परहित अपनी अस्ति का जाल|
दानवीर निकला राधेय जो दिया कवच कुण्डल है |
होकर लहू लुहान स्वयं है किया दान अमर है|
सच है एक न एक दिन सबको त्याग करना पड़ता है|
परहित के लिए इस जग में स्वयं जलना पड़ता है|
ऐसे ही नहीं होते इस जग में कीर्ति गाने वाले|
दूसरों की प्रशंसा में कुछ गीत सुनाने वाले|
जग में सबसे पूजित वही है, जो दानी, त्यागी है|
करता जो परार्थ कर्म है, वो ही बड़भागी है|
करते सुजस गान सब जग में उसका जो त्यागी है|
पुरूष वही महान है जग में मनुज जो परित्यागी है|
-रजत द्विवेदी
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