सुनकर अपने दिल की पुकार
चन्द अल्फाज़ों को ले उधार
कोरे काग़ज पर स्याह उड़ेल
देता हूँ जज्बातों को उतार
भरकर कलम में चिंगारी
कर रखी सृजन की तैयारी
कुछ इसी तरह से हर पल मैं
एक नई कहानी लिख रहा हूँ मैं|
कभी चन्द किस्से बचपन के
या कुछ लतीफे अल्हड़पन के
या कोई किस्सा यौवन का
या कि बखान जीवन रण का
कैसी भी कोई कहानी हो
जो जीवन की अमित निशानी हो
कलम उतार कर काग़ज पर
एक कहानी लिख रहा हूँ मैं|
हर रोज़ हारता जीतता हूँ
हर अनुभव से कुछ तो सीखता हूँ
फिर लेकर सहारा शब्दों का
कागज़ पर अनुभव लिखता हूँ
यूँ नित दिन काग़ज कलम लिए
शायद कुछ अलग मैं दिखता हूँ
चूँकि हर दिन जो सीख है मिलती
उन पर कहानी लिख रहा हूँ मैं|
-रजत द्विवेदी
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