रूके रहेंगे, कहोगे जब तक
झुके रहेंगे, सहेंगे तब तक
प्रतीक्षा में अब भी बैठे हैं
मिल ना जाये न्याय जब तक|
मगर बताओ सहे कब तक
घात जो हर दिन लगता रहता है
कहो चुप हम रहें कब तक
सम्मान को जो हर दिन ठेस लग रही है|
औरत, लड़की, बच्ची-किसी को ना बख्शा
हर किसी की अस्मिता लूटी जा रही है
एक समाज जो कभी इंसानों का था
आज हैवानों का जमघट बनता जा रहा है|
कहो आखिर कहाँ गई इंसानियत
हर बात को तो मज़हब का रंग चढ़ा दिया
कहो क्या मोल लगाया है जिंदगियों का
सियासत में सब कुछ दाव पर लगा दिया|
कहो ये व्यापार देखे कब तक
इंसानियत की हार सहे कब तक
गुहार लगाते रहेंगे, विरोध करते रहेंगे
मिलेगा नहीं न्याय जब तक|
-रजत द्विवेदी
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