तिमिर में गुम था मैं
प्रकाश की उम्मीद लगाया बैठा
अंधकार के क्षीण होने का इंतज़ार करता
आशाओं और निराशाओं से घिरकर
ख़ुद के मन को टटोलता
अपने जीवन के वजूद को खोजता
मैं गुम था यथार्थ की तलाश में|
सत्य और असत्य के भंवर में फँसा
धर्म और अधर्म की नयी व्याख्या खोजता
मित्रता और प्रेम की पहचान करता
कभी मोहरहित बैराग धारने को सोचता
जगत की समस्त रीतियों को चुनौती देता
चहु ओर फैले पाखंड के अंधियारे में
मैं गुम था यथार्थ की तलाश में|
-रजत द्विवेदी
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