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Showing posts from July, 2017

आज फिर पुकार सुन, राष्ट्र की गुहार सुन |

आज फिर पुकार सुन, राष्ट्र की गुहार सुन | युद्ध का संघोष है, सब दिलों में रोष है, देश है ये बट रहा, कहें किसका दोष है?  मंत्री सारे चोर हैं, संत्री घूसखोर हैं भ्रष्ट ये समाज है, मूर्ख करता राज है, त्रस्त ये धरा हुई बोझ इनका धार कर चीखती है मातृभूमि,जोर से पुकार कर, तू ज़रा पुकार सुन, मातु की पुकार सुन | आज फिर पुकार सुन, राष्ट्र की गुहार सुन | देख इस समाज को, ढोंग के रिवाज को, बेटे कर रहे निलाम जननी की लाज को, भाई भाई ना रहा, मित्र शत्रु बन चला, निज स्वार्थ हित यहाँ, छल कपट है खेलता| गीता भी रो रही, रो रहा कुरान है, कैसे हम हैं लड़ रहे, कितनी सस्ती जान है, रो रही इंसानियत, रोज़ रोज़ हारकर चीखता है मानव ये दर्द से कराहकर, अब तो पुकार सुन, राष्ट्र की गुहार सुन | तू खड़ा क्यों मौन है?क्या है मन में सोचता? है सनी लहू से धरती, क्या नहीं तू देखता? इस धरा की रक्षा हेतु, कोई भी जगा न है, झूठे वीर है यहाँ, धिक इन्हें सदा को है | देखता नहीं है क्या जो मान घर का खो रहा, देश बिक रहा मेरा, इमान सबका सो रहा | वीर बन, प्रशस्त हो, बोल अब दहाड़ कर, जय जय माँ भारती, ज़ोर से प