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Showing posts from May, 2019

नर और नारी

 पुरुष प्रकृति जो चित्त मोह करता है, नारी में बस सुंदरता खोजा करता है। नारी पौरुष का बल देखा करती है, पुरुषों की प्रतिभा को परखा करती है। पुरुषों में अभिलाषा बस तन छूने की, नारी की प्रकृति होती है मन छूने की। जब तक ना त्रिया नर में कुछ बल पाती है, नर को ना कभी तब तक वह अपनाती है। है भले पुरुष में निहित प्रकाश भुजबल का, बिन नारी नहीं कुछ भी परिचय प्रियतम का। नारी से ही है पुरुष सम्मान जगत में पाता, नारी ना हो तो नर को न कोई अपनाता। नर नारी का ये जोग प्रेम का बल है, नारी से ही मिलता नर को संबल है। नारी सृष्टि, नर ही उसका सृजन है, ये मेल परस्पर से ही चलता जीवन है। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/hai-puruss-prkrti-jo-citt-moh-krtaa-hai-naarii-men-bs-khojaa-qpeys

आत्मनिरीक्षण..

"मिथ्या का भार धरूं किस पर? शब्दों के वार करूं किस पर? किस पर घात का आरोप लगाऊं? छल का मैं प्रयास करूं किस पर? किस किस को अक्स दिखाऊं मैं? क्यों ना आईना ही तोड़ जाऊं मैं? सच सहने का जब बल ही नहीं, तो कैसे कुछ कह जाऊं मैं? औरों को कैसे टटोल सकता हूं? किसी का भेद ख़ाक खोल सकता हूं। जब मेरा वजूद मिथ्या लगता है, तो भला किसे पापी कह सकता हूं? मुझ में जो मेरी कमियां हैं, मेरी ख़ुद की नाकामियां हैं। उन को कैसे छुपाऊं मैं? क्यों शर्म से ना मर जाऊं मैं? सारा जीवन औरों को देखूं। क्यों कभी नहीं ख़ुद में झाकूं? जब स्वयं बदल ना पाऊं मैं, तो कैसे दुनिया को बदलूं?" ले यही सोच मुसाफ़िर वो एकल ही चला जाता है। लोगों की भीड़ में शामिल है, ख़ुद को ना खोज पर पाता है। हर रोज़ हूं ही चलता रहता, ख़ुद से ही बातें करता है। औरों को देखने से पहले, ख़ुद में ही झांका करता है। हां, मगर अभी तक खोज रहा, वो कारण उसे मिल जाए जो, जिस पर वो स्वयं पर गर्व करे, तो ख़ुद ही संभल फिर जाए वो। मन के सब दोष फिर दूर होंगे, सब सुख उसके भी

मेरा प्रतिबिंब..

उज्ज्वल मन, सुंदर शरीर,  जिसे देख मन होता अधीर। सब हांथ है, फिर भी फ़कीर, मुख पर नहीं तनिक भी पीर। ये कौन हृदय से है वीर?  बुद्धि से जो है अति गंभीर। विचलित ना होता पीड़ाओं से, मुख मोड़ता नहीं विपदाओं से। हो अडिग सब कुछ सहता है, बंधता नहीं बाधाओं से। है निपुण वीर कलाओं से रण में, रण की क्रीड़ाओं में। जीवन को जीता हंस हंस कर, जीवन से जीतता है लड़कर, औरों को चाहता निश्छल हो, करता है प्रेम जो मन भरकर। गम में मुस्कुराता जी भरकर, शीतल भी और है आग प्रखर। ये विचित्र छवि है दूर कहीं, आंखों में मेरे जो आन बसी। मेरी ये कल्पना, मैं ना सही, है मगर प्रतिबिंब ये मेरा ही। है धुंधला पड़ा, जो सच नहीं, है छिपा हुआ जो मुझमें ही। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/ujjvl-mn-sundr-shriir-jise-dekh-mn-hotaa-adhiir-sb-haanth-pr-qce4p

स्वप्न नहीं मरा करता है....

अश्रु की माला के मोती, जिसमें अगनित स्वप्न पिरोती, नयनन जो दिन रात भिगोती, गर कभी टूट गिरें चक्षु से, जैसे नर्म जल की धाराएं। किन्तु चंद अश्रु गिरने से, स्वप्न नहीं मरा करता है। स्वप्न क्या है, मन में उभरी एक नई आकांक्षा ही है। जो नयनों को रात जगा कर,चमक उठे जैसे एक ज्योति। किन्तु चंद ज्योति बुझने से, सूरज नहीं मरा करता है। आज नहीं तो कल होगा वो, पूरा अपना स्वप्न सलोना। दिन गर बीत रहे मुश्किल से, तो भी क्यों है उन पर रोना? कुछ पल भर के थम जाने से, दिनकर नहीं थमा करता है। आयेगा वो भी इक सावन, जिसमें मन ये झूम उठेगा। मन की उमंग तरंगों में तन नाँच नाँच कर घूम उठेगा। ग़म चाहे हो जितना क्यों ना, उमंग नहीं छूटा करता है। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/ashru-kii-maalaa-ke-motii-jismen-agnit-svpn-pirotii-nynn-jo-p1lj6

घर की ओर जाने वाली सबा....

घर की ओर जाने वाली सबा ये सदाएं लेती जा, मेरी इक छोटी निशानी घर वालों को देती जा। घर का वो अंगान आज भी मुझको याद आता है। खेल खेलता बचपन मेरी आंखों को तर कर जाता है। एक नज़र घर के द्वारे पर जो पहले टिक जाती थी। दूर से कहीं पापा के स्कूटर की आवाज़ आती थी। भागे भागे घर के द्वारे पर आकर रुक जाता था। आंखों में पापा से मिलने का उमंग भर जाता था। आंख मिचौली कर मां से जब रसोई में घुस जाता था। और चुपके से दूध में से मलाई चुरा चुरा कर खाता था। मां फ़िर रंगे हांथ पकड़ कर डांट बहुत सुनाती थी। फिर ख़ुद ही मलाई में मिश्री घोल मुझे खिलाती थी। भाई छोटा लड़ता बहुत था, मुझे बहुत सताता था। ख़ुद बच बच कर हर इक बात मुझ को ही फंसा था। मगर कभी जब आए विपद तो मेरा साथ निभाता था। मेरी खातिर वो दुनिया में हर किसी से लड़ जाता था। आज भी हैं सब ऐसे ही, ऐसे ही साथ निभाते हैं। मगर हाय ये मीलों की दूरी, साथ नहीं रह पाते हैं। त्योहारों में, कुछ मौकों में ही हम अब मिल पाते हैं। जीवन भर का प्रेम सारा चंद घंटों में निभाते हैं। मगर सबा ये खबर आज भी तू घर को देकर आना। जहां रहूं मैं, मुझको तो हर बार