अश्रु की माला के मोती,
जिसमें अगनित स्वप्न पिरोती,
नयनन जो दिन रात भिगोती,
गर कभी टूट गिरें चक्षु से, जैसे नर्म जल की धाराएं।
किन्तु चंद अश्रु गिरने से, स्वप्न नहीं मरा करता है।
स्वप्न क्या है, मन में उभरी एक नई आकांक्षा ही है।
जो नयनों को रात जगा कर,चमक उठे जैसे एक ज्योति।
किन्तु चंद ज्योति बुझने से, सूरज नहीं मरा करता है।
आज नहीं तो कल होगा वो, पूरा अपना स्वप्न सलोना।
दिन गर बीत रहे मुश्किल से, तो भी क्यों है उन पर रोना?
कुछ पल भर के थम जाने से, दिनकर नहीं थमा करता है।
आयेगा वो भी इक सावन, जिसमें मन ये झूम उठेगा।
मन की उमंग तरंगों में तन नाँच नाँच कर घूम उठेगा।
ग़म चाहे हो जितना क्यों ना, उमंग नहीं छूटा करता है।
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