विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है। बहु नयनों में अंधियारा है, चंद घरों में ज्योति है। यह समाज क्यों गर्त में पड़ा, सुख की तान सुनाता है। थोथी बात बखाने ख़ुद की, तम से घिरता जाता है। आज पतन की राह पर चला है कारवां मानव का। भूख से ग्रसित तड़प रहे घर, खुल गया मुख दानव का। नगर के एक छोर पर देखो भात दाल ना रोटी है। दूजी ओर लुटाते देखो व्यर्थ में ही लोग मोती है। ये कैसा है फ़र्क जगत का एक हांथ में है लक्ष्मी, दूजे में है लिए हुए जो बिलख रही भूखी बच्ची। कहो क्यों भला नियति की झोली इतनी छोटी है। एक वर्ग को कंकड़ देता, दूजे को दे मोती है। विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है। बहु नयनों में अंधियारा है, चंद घरों में ज्योति है। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/vidyut-kii-ckaacaundh-men-dekh-diip-kii-lau-rotii-hai-bhu-yh-r8tsi
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ