आज जन्मा है जो शोला क्रान्ति की महफ़िल में है,
वो नहीं बुझता कभी, अब डर कहां इस दिल में है।
खींच ली है इक लकीर अब हांथ पर जो मौत की,
क्यों डरूं मैं अब भला जब मौत मुस्तकबिल है!
कर चुका अंतिम दुआ अब रब से मांगू क्या भला,
ज़िंदगी की भीख ना चाही कभी "बिस्मिल" ने है।
मांगता अहल-ए-वतन की ज़हन में थोड़ी जगह,
गर करें वो याद कभी क्या क्या किया बिस्मिल ने है।
ज़िंदगी निसार मुल्क पर कर चुका कबका भला,
अब तसल्ली होगी गर मेरी याद हर इक दिल में है।
Comments
Post a Comment