हिमकिरीट शुभ शैल शिखर, अनंत तक फैला जिसका अम्बर। भारत की है पहचान अमर, है खड़ा हिमालय अडिग होकर। (१) हिम चीर निकल आई गंगा, धरती को पवित्र कर देती है। जन जन को शुद्धता दान करे, सबको जीवन वर देती है। (२) होती है भोर आज़ानों से, शंकर, कृष्णा के गानों से। एक ओंकार अरदास और गिरिजाघर की आवाज़ों से। (३) हर चार कोस पानी बदले, हर चार कोस बोली बदले। एक नद में जैसे मिलती धारें, वैसे ही भाषा का प्यार मिले। (४) हिंदी तो मेरी माता है, पर उर्दू को मौसी कहता हूं। कभी छंद, दोहों में बंधता हूं, कभी नज़्मों में आवारा रहता हूं। (५) कोई भेद नहीं है अंबर का, सब तारे नभ पर एक से हैं। कोई भेद नहीं मुझको स्वर का, सब भाषाएं बहनों सी हैं। (६) कब अंबर बांट सका कोई? कब भाषा बांट सका कोई? जो डोर जुड़ी है प्रेम की, उस डोर को काट सका कोई? (७) ये जो सत्ता का खेला है, मूर्खों का जमघट मेला है। हम साथ है जब तक, एक ही हैं, जो टूटा तो म
कलम की स्याही से हर पल नया अंगार लिखता हूँ