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Showing posts from January, 2019

ऐक्य भारत, एक भारत....

हिमकिरीट शुभ शैल शिखर, अनंत तक फैला जिसका अम्बर। भारत की है पहचान अमर, है खड़ा हिमालय अडिग होकर।  (१) हिम चीर निकल आई गंगा, धरती को पवित्र कर देती है। जन जन को शुद्धता दान करे, सबको जीवन वर देती है।         (२) होती है भोर आज़ानों से, शंकर, कृष्णा के गानों से। एक ओंकार अरदास और गिरिजाघर की आवाज़ों से।       (३) हर चार कोस पानी बदले, हर चार कोस बोली बदले। एक नद में जैसे मिलती धारें, वैसे ही भाषा का प्यार मिले।      (४) हिंदी तो मेरी माता है, पर उर्दू को मौसी कहता हूं। कभी छंद, दोहों में बंधता हूं, कभी नज़्मों में आवारा रहता हूं।  (५) कोई भेद नहीं है अंबर का, सब तारे नभ पर एक से हैं। कोई भेद नहीं मुझको स्वर का, सब भाषाएं बहनों सी हैं।           (६) कब अंबर बांट सका कोई? कब भाषा बांट सका कोई? जो डोर जुड़ी है प्रेम की, उस डोर को काट सका कोई?     (७) ये जो सत्ता का खेला है, मूर्खों का जमघट मेला है। हम साथ है जब तक, एक ही हैं, जो टूटा तो म

हिन्दू- मेरी पहचान

मैं तेजपुंज, तम में प्रकाश भरता हूं, जग को गीता का अमर दान करता हूं। मैं सिखलाता हूं जग को भाईचारा, सौहार्द और प्रेम से ही जग में उजियारा। मैं निर्गुण और सगुण सबका पंथी हूं, तुलसी, कबीर, रसखान, सूर संगी हूं। चल अचल सभी मेरे ही तो साथी हैं, 'हिन्दू' हूं मैं, मित्रता मेरी थाती है। मैंने ही तो सिंधु को ज्वार दिया था, मुझसे ही तो 'सिकंदर' हार गया था। मैंने ही तो 'भारत' को एक किया था, ले फूल हांथ, खड्गों को फ़ेंक दिया था। मैं हूं 'कौटिल्य', हूं 'चंद्रगुप्त' भी मैं ही, मैं ही 'आज़ाद', हूं 'भगत सिंह' भी मैं ही। मैं ही हूं वो अश्फाक जो अमर हुआ था, जिसने पुनर्जन्म में भारत को चुना था। मैं हूं 'सुभाष', जिसने सब भेद मिटाया, मज़हब को छोड़ मुल्क का गान सुनाया। जितने जग में सब पंथ और पंथी हैं, सब तो मेरे ही साथी हैं, संगी हैं। फिर क्यों हिन्दू का नाम आज मिटता है? क्यों हिन्दू को पहचान धर्म देता है? मैं सिंधुपति, इसलिए नाम हिन्दू है, सारे जग में जो प्रेम का मुख्य बिंदु है। जो