इस सुबह उस उफक़ पर जब अफताब इश्क़ का आया होगा,
हर किसी की ज़िंदगी में इश्क़ बरसाया होगा।
है इधर ये छांव जो क्या तुमको भी है मिल रही,
या कि बस मेरे ही घर को धूप आज आई नहीं।
क्या कभी तुमको भी इश्क़ ने इतना तरसाया होगा?
इस सुबह उस उफक़ पर जब अफताब इश्क़ का आया होगा।
क्या कभी तुमको मिली वो ठंडी सबा इस सहर की,
जिसको अरसे से भेजा करता था मैं तेरे नाम पर।
मुझको अब तक ना मिला पैग़ाम तेरे मिलने का,
क्या कभी इस क़दर किसी का दीदार तुझे तड़पाया होगा?
इस सुबह उस उफक़ पर अफताब इश्क़ का आया होगा।
आज भी चाहत मुझे है बस तेरे इक नाम से,
आज भी खोता सुकूं हूं बस तेरे ही नाम पर।
मुझको मिलता ही नहीं है एक भी पल चैन का,
क्या कभी किसी के खयाल ने तुझको भी नींद से जगाया होगा?
इस सुबह उस उफक़ पर अफताब इश्क़ का आया होगा।
- रजत द्विवेदी
https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/subh-us-uphk-pr-jb-aphtaab-ishk-kaa-aayaa-hogaa-hr-kisii-kii-o3hoi
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