टूटी सांसों की लय तो क्या?
कंठ सूख गया बेजल हो तो क्या?
शर क्षीण होता है अब तो क्या?
हो काल स्वयं आया लेने मुझको
तो काल से अब हो भय कैसा?
एक वो भी दिवस कभी आया था,
जब मैंने जन्म यहां पाया था।
एक ये भी दिवस आज आया है,
ईश्वर ने मुझे बुलाया है।
सब काज पूर्ण कर लिए यहां,
अब मुझको भी तो जाना है।
ईश्वर ने मुझे बुलाया है,
उसके द्वारे भी जाना है।
हो भले आज नश्वर ये शर,
मैं रहूं सदा सबके हिय घर।
मेरी प्रचंडतम आग प्रखर,
हरदम करेगी उजियाला घर घर।
मैं एक अमिट विचार बनकर,
हर माथे पर छा जाऊंगा।
तुम भूलोगे जब जब मुझको,
हर बार याद तुम्हें आऊंगा।
जब जब पथ पर थक बैठोगे,
मैं राह नई दिखलाऊंगा,
हर बार तुम्हारे दिल में मैं,
उम्मीद का दीप जलाऊंगा।
- रजत द्विवेदी
कंठ सूख गया बेजल हो तो क्या?
शर क्षीण होता है अब तो क्या?
हो काल स्वयं आया लेने मुझको
तो काल से अब हो भय कैसा?
एक वो भी दिवस कभी आया था,
जब मैंने जन्म यहां पाया था।
एक ये भी दिवस आज आया है,
ईश्वर ने मुझे बुलाया है।
सब काज पूर्ण कर लिए यहां,
अब मुझको भी तो जाना है।
ईश्वर ने मुझे बुलाया है,
उसके द्वारे भी जाना है।
हो भले आज नश्वर ये शर,
मैं रहूं सदा सबके हिय घर।
मेरी प्रचंडतम आग प्रखर,
हरदम करेगी उजियाला घर घर।
मैं एक अमिट विचार बनकर,
हर माथे पर छा जाऊंगा।
तुम भूलोगे जब जब मुझको,
हर बार याद तुम्हें आऊंगा।
जब जब पथ पर थक बैठोगे,
मैं राह नई दिखलाऊंगा,
हर बार तुम्हारे दिल में मैं,
उम्मीद का दीप जलाऊंगा।
- रजत द्विवेदी
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