कीर्तियां बटोर कर लाया हूं,
अम्बर को आज सजाने को।
अगनित स्वर मोल लिए मैंने
जयगीत सुरों को गाने को।
जुगनू को मीत बनाया है,
चारू से रार मचाने को।
ले ली मशाल कर में मैंने
नभ में क्रान्ति लिख जाने को।
देखो अब क्या क्या कर सकता हूं मैं
जगती में आग लगाने को।
तम में प्रकाश भर जाऊंगा।
नभ में जयकार लगाऊंगा।
इस इंकलाब की बेला में,
चिंगारी कर में ले आऊंगा।
जब जब ये तिमिर गहराएगा,
जब कहीं शशि छिप जाएगा,
मैं बनकर एक शक्तिपुंज सा
तारों में दीप जलाऊंगा।
- रजत द्विवेदी
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