मकबूल आज फिर इश्क़ का फसाना होगा,
फना फिर से इंकलाब का दीवाना होगा।
एक बाघी आज फिर से काफ़िर हुआ है,
थोड़ा परेशान तो बेशक ये ज़माना होगा।
आज फ़िर रिवाजों को किसी ने चुनौती दी है,
अब इतना तो शोर शहर में ज़रूर उठेगा।
कल तक जो बंधा था तम की ज़ंजीरों में,
अब उसकी आज़ादी पर चर्चा मनमाना होगा।
आज छलक उठेगा मैकदे में जाम इश्क़ का,
शराब का नशा अब बेईमाना होगा।
ये इश्क अपने मुल्क से है या किसी शख़्स से न जाने,
पर इस इश्क़ का कायल सारा मैखाना होगा।
इंकलाब और इश्क़ अब जो दोनों साथ हुए,
तो ज़ाहिर है इस बाघी का दुश्मन ज़माना होगा।
कुछ दीवारें ढहेंगी, थोड़ी सियासत भी ना खुश होगी,
सारे शहर में उठते फुगान का कोई पैमाना ना होगा।
- रजत द्विवेदी
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