लहू की धार से बहकर कलम की स्याह निकली आज,
कि रग रग माँग उठता है गूँजकर आज फिर स्वराज|
कोलाहल आज मचा फिर नगर और चौबैरों में,
उठी है फूल आज फिर से नसे भरकर नये अंगारों से|
कलम फिर आज जैसे दिनकर के हों शब्द लिए
या कि बिस्मिल और आज़ाद के क्रान्ति गीतों से भरी|
या कि छिड़क दिया किसी ने वीर भगत का हम पर इश्क,
या कि फिर से स्मरण है आया शेर-ए-हिन्द वीर सुभाष|
या कि गीत गज़ल बन गई किसी कबीर की वाणी से,
या कि तुलसी ने है छेड़े गीत राम कहानी के|
उत्साहित है आज रोम रोम फिर सृजन संघोष नया,
ज़रे ज़रे में फिर भरा हुआ है आज विजय का जोश नया|
-रजत द्विवेदी
Comments
Post a Comment