नये भोर की प्रथम लालिमा
तम में से निकली जो अरुणिमा
आज पुकारती सुबह की ओर
राह नयी फिर हमें बुलाती
चलो निरंतर ध्येय की ओर|
पथ के आवर्तों से क्यों थकते हो
मन में कुछ संशय क्यों रखते हो
मन तो चंचल, मंचला है
कब वो किसी और की सुनता है
और आवर्तों से क्या डरना
वो अब राह के साथी हैं
साधो मन को, बाँधों तन को
मंज़िल से बाँधों इक डोर
राह नयी फिर हमें बुलाती
चलो निरंतर ध्येय की ओर|
हाँ माना बहुत अभी चलना है
हाँ अभी बहुत कुछ बदलना है
बदलाव किन्तु नियति का लेखा
कब तक सब एक सा रहना है
उल्टी चलती हवा को भी तो
एक दिन कभी बदलना है
परिवर्तन को अनिवार्य मान
बस साध हृदय को लक्ष्य की ओर
राह नयी फिर हमें बुलाती
चलो निरंतर ध्येय की ओर|
-रजत द्विवेदी
तम में से निकली जो अरुणिमा
आज पुकारती सुबह की ओर
राह नयी फिर हमें बुलाती
चलो निरंतर ध्येय की ओर|
पथ के आवर्तों से क्यों थकते हो
मन में कुछ संशय क्यों रखते हो
मन तो चंचल, मंचला है
कब वो किसी और की सुनता है
और आवर्तों से क्या डरना
वो अब राह के साथी हैं
साधो मन को, बाँधों तन को
मंज़िल से बाँधों इक डोर
राह नयी फिर हमें बुलाती
चलो निरंतर ध्येय की ओर|
हाँ माना बहुत अभी चलना है
हाँ अभी बहुत कुछ बदलना है
बदलाव किन्तु नियति का लेखा
कब तक सब एक सा रहना है
उल्टी चलती हवा को भी तो
एक दिन कभी बदलना है
परिवर्तन को अनिवार्य मान
बस साध हृदय को लक्ष्य की ओर
राह नयी फिर हमें बुलाती
चलो निरंतर ध्येय की ओर|
-रजत द्विवेदी
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