पथिक, पथ पर खड़ी कठिनाइयों को झेलना तू सीख,
कि अब क्षण वीरता का है, ध्येय का ध्यान कर तू अब,
समर सम ज़िंदगी तेरी, तू लड़कर जीतना अब सीख|
न एक पल हार अब तू मान, विजय की माँग ना तू भीख,
तू चलता ही चला जा, खुद ही तू बना अपनी लीक|
कि क्षण है अब दिखाने का, कि तुझमें जो़र कितना है,
कि क्षण है अब बताने का, विजय का कोष किसका है|
नहीं ये क्षण बताने का, यहाँ पर दोष किसका है,
समर को जीत ले तू अब समर संघोष होता है|
भले इस सोैर मंडल सम जगत में कई सितारे हैं
कोई एकल चमकते हैं, कोई सूरज को प्यारे हैं,
कि तू टूटे हुए कोई यहाँ ध्रुव सा चमकता है
सभी तारों से भी बढ़कर तेरा आलोक दिखता है|
कि अब क्षण वीरता का है, ध्येय का ध्यान कर तू अब,
भूलाकर सब चिन्ताएँ, कि बस लक्ष्य साधो अब|
समय का चक्र चलता है कि अब इतिहास लिख दे तू,
कि अब काल के मस्तक पर अपना नाम गढ़ दे तू|
-रजत द्विवेदी
-रजत द्विवेदी
Bahut badiya
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