ये क्या गली है, ये क्या नगर है,
सिमटी हुई हैं सांसे, ना जाने कैसा डर है,
ना जिस्म का पता है ना जान की खबर है|
कब जाने क्या हो जाये, किसको यहाँ फिकर है,
कुछ चैन से हैं सोते, कुछ नींद को तरसते|
कुछ गुम हैं होश खोकर, मदमस्त हो नशे में,
कुछ हैं तडपते निस दिन, अंगार हैं बरसते |
कोई नहीं सहारा कोई न हमसफर है,
है रात का अंधेरा सुनसान मंज़र है|
है खौंफ मरने का, जिंदगी बेसबर है,
ये गली है दोस्तों, कैसे ये नगर है|
-रजत द्विवेदी
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