देखो हुआ सेवरा, है सिमट रहा अंधेरा
कहीं भवरे चहकते हैं, नयी कलियाँ खिलती हैं
कहीं पर नाचते मयूर, कहीं तितलियाँ उड़ती हैं|
नया दिन है, नये दिन में नयी उमंगों ने है घेरा
देखो हुआ सवेरा, है सिमट रहा अंधेरा|
नये प्रकाश से भरकर कि अब यह शर चमकता है
तिमिर की कैद से छूटा कि दिनकर खूब हँसता है|
कहीं अब मौज में बहती नदी भी मुस्कुराती है
कहीं सागर की लहरों में मछलियां गीत गाती हैं|
बडे़ अभिमान से हिमालय भी ज़रा अब इतराता है
नया आलोक में उसका कि कद बढता जाता है|
है चहु ओर हरियाली,खुशियों ने किया बसेरा
देखो हुआ सवेरा, है सिमट रहा अंधेरा|
-रजत द्विवेदी
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