सर्द हवाओं से घिरे बादलों के बीच,
दिखा वो मध्य रात्रि का चाँद
हज़ारों सितारों के बीच चमकता,
ठंडी स्वच्छ चाँदनी देता हुआ लाखों गर्त में डूबे जुगनुओं को
जैसे किसी प्यासे को नदी का किनारा मिल गया हो|
कारे कारे गगन पर जगमगाता,
दिखा वो मध्य रात्रि का चाँद
अधूरे सपनों का कारवाँ लिए,
कई टूटे दिलों में नये ख्बाव जगाता हुआ
जैसे सूखे बंजर भूमि पर किसी ने उम्मीदों के बीज बो दिए हों|
घने जंगलों में अमावस की रात में उगता
दिखा वो मध्य रात्रि का चाँद
बेचैन मन वाले बदन में तंद्रालस भरता,
कुछ वक्त और ठण्ड से सिमट कर सो जाने को मजबूर करता
जैसे जंगल में जीवों पर आलस का मंतर फूँक दिया हो|
नये दिन की उम्मीद जगाता,
दिखा वो मध्य रात्रि का चाँद
नयी भोर के स्वागत के लिए,
गहराते तिमिर को हर पल कमज़ोर करता हुआ
जैसे देवताओं को भोर भ्रमण का न्यौता देता हो|
-रजत द्विवेदी
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