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बिस्मिल की याद....

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सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है|
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमाँ,
हम अभी से क्या बताएँ कया हमारे दिल में है|

मिट नहीं सकते फसाने जिंदगी के यार के,
कट नहीं सकते हमारे सर किसी तलवार से,
कल भी थी और आज भी जलती शमा वो दिल में है|
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

हैं गरज कर बोलते हम सिंह की दहाड़ से,
हमगिरी तक डोलते अब तीव्र इस हुंकार से,
मौत से भी क्यों डरें, क्या शक्ति उस बुज़दिल में है|
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

आज फिर से उठ रहा दिल में नया एक ज्वार सा,
आ गया क्षण है सृजन का या जगत संहार का,
काल बनकर अब खडे़ हम मौत की महफ़िल में हैं|
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

गूँजती चीखें जो निकली थी हमारी आह सी,
याद है इतिहास को जो भेंट दी थी जान की,
काल से पूछो भला क्या क्या किया बिस्मिल ने है|
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

याद रखना ऐ वतन वालों हमें हरदम यहाँ,
था हमारे वासते ये मुल्क ही सारा जहाँ,
भूल ना जाना भरा था इश्क जो इस दिल में है|
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है|
वक्त आने दे बता देंगे तुझे एे आसमाँ,
हम अभी से क्या बताएँ कया हमारे दिल में है|

-रजत द्विवेदी

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विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है। बहु नयनों में अंधियारा है, चंद घरों में ज्योति है। यह समाज क्यों गर्त में पड़ा, सुख की तान सुनाता है। थोथी बात बखाने ख़ुद की, तम से घिरता जाता है। आज पतन की राह पर चला है कारवां मानव का। भूख से ग्रसित तड़प रहे घर, खुल गया मुख दानव का। नगर के एक छोर पर देखो भात दाल ना रोटी है। दूजी ओर लुटाते देखो व्यर्थ में ही लोग मोती है। ये कैसा है फ़र्क जगत का एक हांथ में है लक्ष्मी, दूजे में है लिए हुए जो बिलख रही भूखी बच्ची। कहो क्यों भला नियति की झोली इतनी छोटी है। एक वर्ग को कंकड़ देता, दूजे को दे मोती है। विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है। बहु नयनों में अंधियारा है, चंद घरों में ज्योति है। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/vidyut-kii-ckaacaundh-men-dekh-diip-kii-lau-rotii-hai-bhu-yh-r8tsi
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मेरी पहचान

हिंद महासागर में उठता,कोई भीषण ज्वार हूँ मैं शंकर के डमरू में उठता महाप्रलय हुंकार हूँ मैं गंगा की निर्मल लहरों में जैसे मौज अपार हूँ मैं   नारायण का स्वयं मैं जैसे कोई रूप विस्तार हूँ मैं   दिनकर की रेशम किरणों का नभ में फैला हार हूँ मैं चाँद का चकोर हूँ,अगनित तारों का यार हूँ मैं   तुलसी का रघुबीर,मीरा का निश्छल प्यार हूँ मैं शंकर की कोई प्रतिमा या निर्गुण शिव जग का आधार हूँ मैं रणधीर समर में अडिग खड़ा वीरता की भरमार हूँ मैं रग रग में करता जैसा पौरुष का संचार हूँ मैं नरसी भगत सा प्रेमी हूँ,भक्ति का अनुपम सार हूँ मैं  सभी संवेदनों से भरा, खुद में ही संसार हूँ मैं -रजत द्विवेदी