उठ जाग मुसाफ़िर छोड़ चल ये रैन बसेरा,
दिन हुआ नया अब आगे बढ़, देख मंज़िल पुकार रही|
घने कुहासे से निकल,रश्मियाँ जगत चमका रहीं,
चल छोड़ आलस, नींद त्याग, देख जिंदगी मुस्का रही|
उठ जाग,रगों में आग लगा, दे खुद को यह वरदान अभय,
हर कर्म में प्रशस्त हो, हर तरफ़ सुने सब तेरी जय|
मद मोह में देख सभी मरते, ये रैन बसेरा उनका है,
तू नहीं यहाँ का न ये तेरा,तू पथिक विजय की राह का है|
अमरता का नया वरदान ले नया इतिहास लिख दे,
सुरा पीकर सभी मरते, तू विष का पान कर ले|
-रजत द्विवेदी
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