कुछ गुमनाम हुए, कुछ फ़ना हुए
वतन की आबरू बचाने,
| ना जाने कितनी जवानी आबाद हो गई हैं
गुमनाम है आज मुल्क का नेता,
पहचान तक गुम है वक्त की रेत में
और तुम कहते हो चरखे ने आज़ादी दिलाई है|
घर छोड़ा, मुल्क छोड़ा, पहचान बदल ली
बस मुल्क की खातिर
पर लोग कहते हैं खादी ने जीत दिलाई है|
अरे कभी तो मान लो साहब
इस शेर-ए-हिन्द ने ही आज़ादी दिलाई है|
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