दूर कहीं फिर शोर उठा
नाद एक घनघोर उठा
पुकारता था कोई मदद का हाँथ बढ़ाने को
सियासी पाखण्ड का फिर एक दौर चला
सियासत के खेल में फिर से उनका ही घर लुटा
साहब तो खुश थे दंगों में पैसे लगवा करके
धोखा तो मिला गरीब को, आग में उसका घर फुंका
नेता तो कर गये अच्छे मकान, खाने का वायेदा
मगर सियासी दाव पेज में गरीब का घर फिर टूटा
ना राशन, मिला ना कपड़े मिले,ना रहने का ठिकाना
बस आग मिली मज़हब की, और मिला झगड़े का ताना बाना
दूर वहाँ जो शोर उठा
वो आह निकली थी गरीब की
जिसका घर उजड़ा देंगे में
और बस राख मिली शरीर की|
-रजत द्विवेदी
-रजत द्विवेदी
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