शस्त्र या शास्त्र?
खड्ग या कलम?
ज़र, ज़मीन या कागज़?
युद्ध कहाँ नहीं है?
सब लड़ते यहाँ पर एक जंग ही हैं..
कोई खड्ग से, कोई कलम से
कोई शास्त्र से, कोई तर्क से
फिर युद्ध की कोई एक पहचान कहाँ..
फिर युद्ध का कोई एक नाम कहाँ..
खड्ग या कलम?
ज़र, ज़मीन या कागज़?
युद्ध कहाँ नहीं है?
सैनिक या कवि?
राजा या फकीर?
नेता या वज़ीर?
योद्धा कौन नहीं?
सब लड़ते यहाँ पर एक जंग ही हैं..
कोई खड्ग से, कोई कलम से
कोई शास्त्र से, कोई तर्क से
कोई अस्त्र उठा रण में जाता है
कोई कलम से कागज़ पर शोले बरसाता है
कोई राज्यों को जीतने में लगा रहता है
कोई खुद से रोज़ जीतता या हारता है|
फिर युद्ध की कोई एक पहचान कहाँ..
फिर युद्ध का कोई एक नाम कहाँ..
-रजत द्विवेदी
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