यह भी एक यथार्थ है कि इन रचनाओं का कुछ मोल नहीं।
पाठक को जो छू जाए ऐसे अब कहने को बोल नहीं।
आज पद्धति संवादों की ऐसी कुछ बन आई है।
एक ज़रूरत मन को बस सुकून देने की हो आई है।
कोई रचना मिलती है जब किसी पाठक की हालत से।
वह जोड़ लिया करता है खुद को कुछ पल को उस रचना से।
और हाय! जब दिल को उसके कुछ तसल्ली हो जाती है।
सारी रुचि पाठक की फिर जाने कहां खो जाती है।
अब मिलते हैं बहुत ही कम वो स्वार्थहीन सच्चे प्रेमी।
जो लेखक की प्रतिभा का भी मोल समझा करते हैं।
लेखक केवल प्रशंसाओं का भूखा कभी नहीं होता है।
वह अपनी रचनाओं की सच्ची समीक्षाएं खोजा करता है।
सच्ची प्रशंसा या निंदा- ये ही लेखक को सिखाती हैं।
अच्छे को बेहतर, बेहतर को सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं।
इसलिए एक पाठक लेखक के जीवन में ज़रूरी है।
पाठक बिन लेखक की रचनाएं अक्सर अधूरी हैं।
-रजत द्विवेदी
पाठक को जो छू जाए ऐसे अब कहने को बोल नहीं।
आज पद्धति संवादों की ऐसी कुछ बन आई है।
एक ज़रूरत मन को बस सुकून देने की हो आई है।
कोई रचना मिलती है जब किसी पाठक की हालत से।
वह जोड़ लिया करता है खुद को कुछ पल को उस रचना से।
और हाय! जब दिल को उसके कुछ तसल्ली हो जाती है।
सारी रुचि पाठक की फिर जाने कहां खो जाती है।
अब मिलते हैं बहुत ही कम वो स्वार्थहीन सच्चे प्रेमी।
जो लेखक की प्रतिभा का भी मोल समझा करते हैं।
लेखक केवल प्रशंसाओं का भूखा कभी नहीं होता है।
वह अपनी रचनाओं की सच्ची समीक्षाएं खोजा करता है।
सच्ची प्रशंसा या निंदा- ये ही लेखक को सिखाती हैं।
अच्छे को बेहतर, बेहतर को सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं।
इसलिए एक पाठक लेखक के जीवन में ज़रूरी है।
पाठक बिन लेखक की रचनाएं अक्सर अधूरी हैं।
-रजत द्विवेदी
Comments
Post a Comment