गर्त में डूबते
सितारे कौन पूछे?
अम्बर से टूटते तारे
कौन पूछे?
उदित उस सूर्य का सब
लोहा माने,
यहां ज़िन्दगी से
हारे को कौन पूछे?
भले इस संसार तक ही
जय की चमक है,
भले उस पार
कीर्तियाें की ना कुछ दमक है।
मगर सब तो यहां एक
होड़ में हैं,
एक एक सीढ़ी विजय की
जोड़ते हैं।
यहां जो जीतता वो नभ
का सितारा,
यहां जो क्षीण है वो
जग से हारा।
कि है पहचान तेरी उस
अनल से,
बहा करती सदा जो तेरे
बाहुबल में।
नहीं कुछ और परिचय है
मनुज का,
विजय ही माप है यहां
तेरे पौरुष का।
जो तू जीता समर तो
मिलती ख्याति,
सहज यूं ही कभी ना
कीर्ति आती।
है मिलती जग में
करुणा वीर को ही,
सहानुभूति हारे को ना
कभी भी।
हैं करते मित्रता सब
तब ही तूझसे,
जो दिखती वीरता की
दर्प तुझमें।
भले ही जीत हार सब
मिथ्य ही है,
मगर इस संसार का ये
सत्य ही है।
बली को सदा मिलता कमल
है,
पराजित तो सदा ही कीच
में है।
है अब तो तुझको ही
निश्चय है करना,
कि तुझको चाहिए कंकड़
या सोना।
विजय से झूम कर जग
में जीना,
कि या की हारकर है
विष को पीना।
-रजत द्विवेदी
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