स्वास स्वास में नई आंधियां नया जन्म जब पाती हैं
और रगों में अमित अनल की धाराएं चल जाती हैं,
कतरा कतरा लहू ज्वार की लहरों से भर जाता है,
तभी मनुज के पौरुष का बल अभय अजय हो जाता है।
और रगों में अमित अनल की धाराएं चल जाती हैं,
कतरा कतरा लहू ज्वार की लहरों से भर जाता है,
तभी मनुज के पौरुष का बल अभय अजय हो जाता है।
कितने सिंहों का बल देखो फिर उस नर में आ जाता है,
छोड़ आलस्य और भोग विलास जो रण में खड़ग उठाता है,
कितने गजराजों की चिंघाडें भी फिकी पड़ जाती है,
उस नर के कंठ कमल से जब जयनाद फूट कर आती है।
बंजर भूमि पर भी एक नया सृजन का अंकुर फूट जाता है,
नर जब अपने कर्म के बल से धरती पर हल चलाता है।
और उसके मन में पलते सब दुख,संशय मिट जाते हैं,
चहुं ओर सब लोग उस नर का विजय गीत ही सुनाते हैं।
राख से उठकर ख़ाक बनने तक जो निज कर्मों में लीन रहा,
जग की सारी पीड़ाओं को जिसने वीरता से सहा,
वो मनुज मरण के बाद भी जग में सदा सदा को अमर हुआ,
औरों के पथ दर्शन हेतु उसका जीवन फिर धर्म बना।
-रजत द्विवेदी
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