आओ आओ आओ साथी
थोड़ा हांथ बढ़ाओ साथी,
चट्टानों से रार लगी है
तुम भी साथ निभाओ साथी।
क्यों खुद को अलग समझते हो तुम
तुम भी तो हम जैसे ही हो।
वक़्त बदलने की इक्छा तो
तुम भी मन में रखते ही हो।
फिर क्या भेद है तुम में, हम में
एक से ही हो जाओ साथी।
आओ आओ आओ साथी
पांच उंगलियां मिली तो मुट्ठी,
बिखर गए तो नहीं हम कुछ भी।
साथ चले तो मिलेगी मंज़िल,
अलग हुए तो राह ही भटकी।
एक चाह, जब एक राह है,
तो मिलकर सब आओ साथी।
आओ आओ आओ साथी
थोड़ा हांथ बढ़ाओ साथी।
विपदाओं से डरना क्यों है,
राह से अब मुकरना क्यों है।
एक बार जो वक्त बीत गया,
पछतावा फिर करना क्यों है।
जो करना है, अभी कर चलो
पाछे ना फिर पछताओ साथी।
आओ आओ आओ साथी
थोड़ा हांथ बढ़ाओ साथी।
- रजत द्विवेदी
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