है कहां बंध रही नद अब किसी पारावार में,
उठ रहीं हैं कराल लहरें आज तो मझधार में।
अब कोई भयावी तूफां सिंधु में आने को है,
इस नदी की आज मनसा ज्वार बन जाने को है।
देखो नद अब सिंधु में मिलकर उसे न निगल ले,
खारे पानी की प्रवृति पूर्णतः न बदल दे।
जब कभी भी ज्वार का कद सिंधु से बढ़ जाता है,
सिंधु का सारा पराक्रम ज्वार खींच ले जाता है।
- रजत द्विवेदी
उठ रहीं हैं कराल लहरें आज तो मझधार में।
अब कोई भयावी तूफां सिंधु में आने को है,
इस नदी की आज मनसा ज्वार बन जाने को है।
देखो नद अब सिंधु में मिलकर उसे न निगल ले,
खारे पानी की प्रवृति पूर्णतः न बदल दे।
जब कभी भी ज्वार का कद सिंधु से बढ़ जाता है,
सिंधु का सारा पराक्रम ज्वार खींच ले जाता है।
- रजत द्विवेदी
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