सुनो ज़रा क्या कहते हैं................जब मैंने उनसे ये पूंछा ।
अजय खड़ा तू ढाल हिमालय
किसकी रक्षा करता है ?
नभचुम्भी हे भाल हिमालय
किसकी गाथा गाता है ?
शीशशिखर तू बना हुआ है
सीना ताने खड़ा हुआ है।
आखिर वह क्या है तू जिसका
मान बढ़ाने अड़ा हुआ है ?
सुनो ज़रा क्या कहता है हिमराज जब मैंने ये पूंछा ।
मैं हिमराज हिमालय हूँ
भारत के मस्तक की शोभा।
मैं गिरिराज हिमालय हूँ
भारतीय संस्कृति की आभा ।
मैं ढाल हिमालय भारत का
जो रक्षा करता सदियों से
उस देवभूमि भारत की
जो जगतगुरु है सदियों से ।
मैं हिमराज हिमालय हूँ
जिसके निर्मल हिम पर्वत से
बहती असंख्य अविरल नदियाँ।
जो अपना शीतल पानी दे
भारत को दान हैं करतीं जो
जीवन की लिए सुखदाई है
जो भारत में कलकल बहकर
समृद्ध सौहार्द लाई है ।
मैं बड़भागी हिमालय हूँ
जिस पर शंकर का आसन है
मैं कैलाश हिमालय हूँ जिस पर
शिव करते शासन हैं ।
सुनकर हिमराज की यह वाणी
जिसने भारत कथा बखानी
मैं आगे बढ़ कर चला गया ।
चलते चलते जो मुझे मिले
वह अनुभव तुम्हें बताता हूँ ।
मुझ जैसे मूरख राही को
जो भारत का यह ज्ञान मिला
सुखदाई गाथा भारत की
आओ तुम्हें सुनाता हूँ ।
सबसे पहले जो मुझे मिला
वह था भारत का जन्नत जम्मू ।
नैसर्गिक सुंदरता से भरा
ये राज्य बड़ा ही प्यारा है ।
हिम से धका कश्मीर यहां
सारे जग से न्यारा है ।
आगे बढ़कर मिला मुझे जो
भूभाग वह हिमाद्रि है ।
हिमाचल पंजाब देवभूमि
असल में ये ही हिमाद्रि हैं ।
खुशनुमा मौसम में पलते
ये राज्य बहुत ही सुन्दर हैं ।
परमवीर इतिहास जहाँ
गाया जाता निरंतर है ।
गुरुनानक पोरस आदि यह सब
इनकी कथा सुहानी है।
भगत लाजपत राजगुरु भी
वीरता की निशानी हैं ।
गंगा जमुना सरस्वती
गोदावरी सिंधु कावेरी
नर्मदा चम्बल सतलज और
ब्रह्मपुत्र कृष्णा रावी
कितने ही नाम अलग क्यों ना हों
संचार करें ये जीवन का ।
जिनकी अविरल निर्मल जलधारा
आधार बनें ये जीवन का ।
विन्धय अरावली की श्रेणी
मध्य में जाकर फिर मुझे मिलीं ।
अथक निरंतर खड़े शिखर
जिन पर फ़ूलों की कली खिली ।
मैंने पूँछा उन शिखरों से
क्या भेद तुम्हारे है मन में?
क्यूँ आखिर इतने प्रचलित हो
विख्यात क्यूँ तुम जन जन में ?
सुनो ज़रा क्या कहते हैं यह शिखर जब मैंने ये पूंछा ।
मैं विन्ध्यवसिनी का घर हूँ।
बहती निर्मल नर्मदा से हर्षित
मैं खड़ा विंध्य उच्च शिखर हूँ।
सातपुरा का प्रतिद्वंदी
मैं विंध्य हूँ मध्य भारत में
अडिग अजेय हूँ खड़ा यहाँपर
बूढा होकर सालों से ।
बोल पड़ी फिर अरावली की उच्च शृंखला अपने स्वर में।
कहने लगी अपनी कथा सुनाती अपने उच्च स्वर में ।
मैं अरावली हिमालय की समकालीन पर्वत श्रेणी हूँ ।
मरुभूमि में एक मात्र मैं गर्म शृंखला श्रेणी हूँ ।
विंध्य अरावली की कथा सुनकर मैं हर्षित विस्मित हो गया
कैसे आखिर ये डटे हुए हैं मैं स्वयं अभी तक सोच रहा ?
अभी सोच में पड़ा ही था की एक अजूबा और मिला।
राजपुताना प्रान्त यहाँपर जिसका इतिहास था रकक्तसना।
वीर प्रताप,राय पिथोरा, एकलिंग की अमर कथा
मीरा की कृष्ण भक्ति और जौहर पद्मिनी का।
है अमर कथा बलिदानों की
बहते लहू के निशानों की।
चलों बताता हूँ तुमको अब कथा पूरब भारत की
अजोध्या,पटना और कथा उस निर्मल गंगासागर की।
प्राग्ज्योतिष कामाख्या और सुन्दर पूर्वोत्तर भारत की
सप्तभगिनी पूर्वोत्तर है द्वितीय जन्नत भारत की।
सुनो ज़रा मैं कहता हूँ अब पूरब संस्कृति की गाथा।
राम की अयोध्या
बुद्धा की पाटलिपुत्र
गंगा की गंगासागर
देवी की कामाख्या
यह अमर तीर्थ हैं पूरब के
प्राचीन धरोहर भारत के।
सप्तभगिनी भारत की
सिक्किम जिनका भाई है
मिसाल खूबसूरती की हैं
जिसकी बातें\सुनाई हैं ।
आखिर में मैं जा पहुँचा उस विशाल सागर सम्मुख
जो विश्व के सप्त जलाशय में
है अति विश्षिठ और अति प्रमुख ।
मैंने पूंछा उस सागर से
कुछ अपनी बात बताये वो।
मुझ नासमझ को भारत की
विश्षिठता समझाए वो।
सुनो ज़रा क्या कहता है सागर जब मैंने ये पूंछा ।
मैं हिन्द महासागर हूँ
जो पाओं पखारूँ भारत का।
मैं पयोनिधि हूँ पूरब में
जिसे नाम मिला है भारत का।
अति विशाल जलाशय हूँ
जिसको सिर्फ राम ने ही साधा
लंका विजय से पहले
जिसपर वानरों ने पुल बांधा।
सौभाग्य मिला मुझे जो
रामकाज को सफल किया।
रामभक्ति में लीन हुआ
अपना जीवन सफल किया।
सुनकर अपना गौरवशाली
इतिहास मैं हर्षित उठा।
छाती गद गद हो गयी
जो भारत में मैंने जन्म लिया ।
धन्य हुआ मैं भारत में
मोह लगा अब भारत का।
प्रेम हुआ अब भारत से
गर्व हुआ अब भारत पर।
जननी जन्म भूमि
भारत माता की जय जय।
करूँ दुआ ऐ भारत माँ
तेरी कीर्ति हो विश्व विजय ।
जय हिन्द॥ जय भारत॥
-रजत द्विवेदी
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