कहां और अब राम वनों में रह रहकर पलता है,
माता और पिता की इच्छा का जो पालन करता है?
नाम भले ही राम धरा तो क्या गुण भी अपनाए हैं?
राम नाम का चोगा ओढ़े बस पाखंड दिखाए हैं।
कहां आज कोई भाई अब भाई पर स्नेह बरसाता है,
अपने सहोदर से ही क्यों जाने वो घृणा दिखाता है।
हाय राम! ये किस समाज में आज तुम्हें भजते हैं सब?
घर को तोड़ मकान बनाए, "राम" उसी पर लिखते सब।
ऐसे ही गर चलता रहा तो एक दिन वो भी आयेगा,
भाई से भाई का रिश्ता बस व्यापार रह जायेगा।
राम अपने नाम को बचा लो धरती पर उपकार करो।
ऐसे संबंधों से बचाने फिर से मनुष्य अवतार धरो।
-रजत द्विवेदी
माता और पिता की इच्छा का जो पालन करता है?
नाम भले ही राम धरा तो क्या गुण भी अपनाए हैं?
राम नाम का चोगा ओढ़े बस पाखंड दिखाए हैं।
कहां आज कोई भाई अब भाई पर स्नेह बरसाता है,
अपने सहोदर से ही क्यों जाने वो घृणा दिखाता है।
हाय राम! ये किस समाज में आज तुम्हें भजते हैं सब?
घर को तोड़ मकान बनाए, "राम" उसी पर लिखते सब।
ऐसे ही गर चलता रहा तो एक दिन वो भी आयेगा,
भाई से भाई का रिश्ता बस व्यापार रह जायेगा।
राम अपने नाम को बचा लो धरती पर उपकार करो।
ऐसे संबंधों से बचाने फिर से मनुष्य अवतार धरो।
-रजत द्विवेदी
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