इक शजर से टूट कर गिरता उसी का अंग था,
भेद क्या था उन में जो, वो एक जैसा रंग था।
हो अलग जो वृक्ष से वो टहनी बलखाने लगी,
इस तरह विद्रोह का भी एक अपना ढंग था।
हां मगर चमकने लगा आलोक जब उसमें अलग,
जीण वृक्ष से कुछ अलग दिखने लगा वह अंग था।
कहने को तो गलत था कि शजर से जो अलग हुआ,
हां मगर अलगाव से उसको मिला नया रंग था।
कभी कभी पहचान बनाने के लिए ये चाहिए,
हर दरख़्त की शाख को सब जुदा होना चाहिए।
फिर पता चलती अकेले की अलग पहचान है,
कौन कब तक को भला करता रहे अभिमान है।
ज़र्रे ज़र्रे को हयात से कभी कभी रूठना चाहिए,
हर किसी का किसी से कभी साथ छूटना चाहिए।
जब मनुज होता अकेला, ख़ुद को है पहचानता,
औरों की करुणा ठुकरा कर मान अपना जानता।
- रजत द्विवेदी
https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/ik-shjr-se-ttuutt-kr-girtaa-usii-kaa-ang-thaa-bhed-kyaa-thaa-n3uzg
भेद क्या था उन में जो, वो एक जैसा रंग था।
हो अलग जो वृक्ष से वो टहनी बलखाने लगी,
इस तरह विद्रोह का भी एक अपना ढंग था।
हां मगर चमकने लगा आलोक जब उसमें अलग,
जीण वृक्ष से कुछ अलग दिखने लगा वह अंग था।
कहने को तो गलत था कि शजर से जो अलग हुआ,
हां मगर अलगाव से उसको मिला नया रंग था।
कभी कभी पहचान बनाने के लिए ये चाहिए,
हर दरख़्त की शाख को सब जुदा होना चाहिए।
फिर पता चलती अकेले की अलग पहचान है,
कौन कब तक को भला करता रहे अभिमान है।
ज़र्रे ज़र्रे को हयात से कभी कभी रूठना चाहिए,
हर किसी का किसी से कभी साथ छूटना चाहिए।
जब मनुज होता अकेला, ख़ुद को है पहचानता,
औरों की करुणा ठुकरा कर मान अपना जानता।
- रजत द्विवेदी
https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/ik-shjr-se-ttuutt-kr-girtaa-usii-kaa-ang-thaa-bhed-kyaa-thaa-n3uzg
Comments
Post a Comment