मैं समय हूँ रुक सा गया
आज ज़मी ठहरी सी है
ये कुरुक्षेत्र की रणभूमि
क्यों आज रक्क्त सनी सी है ?
ये इक सन्नाटा छाया है ।
पता नही चलता कुछ है,
ये शाम भला क्यों मौन हुई ?
क्यों दिनकर भी है रोता यहाँ ?
लगता है कोई महावीर
है वीरगति को प्राप्त हुआ।
देखो तो इस खेमे को जो आज मधुर सुख पाते हैं ।
कौरव पापी सारे ये,किसी विजय गीत को गाते हैं।
कृपा,द्रोण,दुर्योधन सब एक समान ही दीखे हैं ।
अधर्मी टोला इन सबका, कोई कपट तो खेले है।
जयद्रत की ये हँसी मुझे बहुत विचलित कर रही है अब।
मैं स्वयं 'काल होकर भी, पूंछता हूँ की हुआ क्या कब?
असल बात मैं जानू हूँ पर कैसे कह दूँ तुम सब से ?
जो हुआ आज है अधर्म यहाँ,उसे बताऊँ मैं कैसे ?
कैसे कहूँ की मासूम जान इक आज यहाँ है छीनी गई ।
तुझे छल से मारने वाले ये क्रूर कौरव ज़िंदा हैं ।
त्रिकाल समय मैं स्वयं आज हूँ स्तब्द रहा तुझे देख।
सात सात ने वार किया, जब था तू निर्बल,अकेला एक।
हाय! कैसा ये भर चढ़ा मुझ अभिमानी,निरमोही पर,
अब क्या कहूंगा अर्जुन से, की गया कहाँ उसका जिगर।
तेरे मातुल कृष्ण से अब कैसे कह सकता हूँ मैं शठ ये।
कि अभिमन्यु वह महावीर,हैं वीरगति को प्राप्त हुए।
हे भीष्म मुझे तुम माफ़ करो, ये पाप का भार मेरे सर है,
जिस कारन अब ये शांत हुआ कुरुभूमि का समर है।
मैं तो इतना बदकिस्मत हूँ की स्वंय नही बच सकता हूँ,
अधर्म की गठरी का ये बोझ किसी और सर नही धर सकता हूँ।
भूत,भविष्य और यथार्थ सब मेरे ही तो गोद में है
लयबद्ध किया जिसे गिरधर ने, कि सृस्टि सदा रहे गतिमय।
मैं ही रोका भीम को था,कि कर न सके वो मदद वहां
रणक्षेत्र में लड़ता था वो वीर अभिमन्यु फसा जहाँ।
सब मेरे ही निर्णय से तो,है हुआ आज यह खूनी खेल
जब जान गयी इक निर्दोष की,सात कायरों के कारण।
पर हे अभिमन्यु याद रहेगा तू इस जग को सदियों तक
वीरगति क्या होती है, है बना मिसाल इसका तू अब।
तेरी वीरता को देख आज स्वयं नारायण रोते है,
ये सूर्य अपनी गति को छोड़ रहा,
चंद्र शोभाहीन हो रहा,
पार्थसारथी कृष्ण का भी,देख है संयम खो रहा।
यदि चाहे स्वयं नारायण तो,सुदर्शन को हैं चला सकते।
पल भर में इस धरती को कौरव विहीन बना सकते।
पर कर्मभूमि पर पिसना तो तेरे तात पिता को है।
धर्म का स्थापना हेतु उन्हें अपना पौरुष दिखाना है।
इसलिए हे वीर अभिमन्यु तू मुझ काल पर रख भरोसा।
समर विजयी तू ही है, कीरत जिसकी है जय सदा।
अब कर्म है करना अर्जुन को,लेना है प्रतिशोध तेरा।
कीर्तिमान करेगा वो जग में अजय नाम तेरा।
-रजत द्विवेदी
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