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Jab lal hui dharti bharat ki, tab lal jaga bharat ka
Dekh Jallianwala Bagh,khaul utha tha lahoo uska,
Par soch,vichaar mein samay bitaya,pala usna tha rosh apna
Poora karne nikal pada jo shayad uska tha sapna
Lahoon bahane walon ko lohe ke chane chabwana tha.

Jab phoota  tha to hila diya singhasan par baithe luteron ko
Khooni bhi khoon se ghabra gaye jab dekha uske   khelon ko.
Woh kya mahaan ye veer tha jo kood pada tha khaai mein
London mein woh akela tha lad  raha tha jo ladai mein.

Tu amar raha tu amar rahe, tu sada  rahe kirtimaan
Teri veerta rahegi sada itihaas ke panno mein vidyaman.












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विद्युत की इस चकाचौंध में.....

विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है। बहु नयनों में अंधियारा है, चंद घरों में ज्योति है। यह समाज क्यों गर्त में पड़ा, सुख की तान सुनाता है। थोथी बात बखाने ख़ुद की, तम से घिरता जाता है। आज पतन की राह पर चला है कारवां मानव का। भूख से ग्रसित तड़प रहे घर, खुल गया मुख दानव का। नगर के एक छोर पर देखो भात दाल ना रोटी है। दूजी ओर लुटाते देखो व्यर्थ में ही लोग मोती है। ये कैसा है फ़र्क जगत का एक हांथ में है लक्ष्मी, दूजे में है लिए हुए जो बिलख रही भूखी बच्ची। कहो क्यों भला नियति की झोली इतनी छोटी है। एक वर्ग को कंकड़ देता, दूजे को दे मोती है। विद्युत की इस चकाचौंध में देख दीप की लौ रोती है। बहु नयनों में अंधियारा है, चंद घरों में ज्योति है। - रजत द्विवेदी https://www.yourquote.in/rajat-dwivedi-hmpx/quotes/vidyut-kii-ckaacaundh-men-dekh-diip-kii-lau-rotii-hai-bhu-yh-r8tsi
AA GAYA EK AUR DEEWANA LIKH GAYA NAYA FASANA YAAD MEIN APNE WATAN KI LUT GAYA THA PARWANA JAB CHADA PYAAR KA  PARWAAN LE AAYA YE KHUD KE SAATH EK BHAYANKAR TOOFAN. TAB DIKHA VEERON KA JAUHAR HO GAYA KHUD KURBAAN PAR NA JAANE DI THI ISNE APNE BHARAT KI AAN. YAAD KARTE HUM RAHENGE TERA YE  VIKAT BALIDAAN. TUME TO BADHA HI DI HAI DESHPREMIYON KI SHAAN. LONG LIVE YOUR GLORY SANDEEP  UNNIKRISHNAN. -R.D

मेरी पहचान

हिंद महासागर में उठता,कोई भीषण ज्वार हूँ मैं शंकर के डमरू में उठता महाप्रलय हुंकार हूँ मैं गंगा की निर्मल लहरों में जैसे मौज अपार हूँ मैं   नारायण का स्वयं मैं जैसे कोई रूप विस्तार हूँ मैं   दिनकर की रेशम किरणों का नभ में फैला हार हूँ मैं चाँद का चकोर हूँ,अगनित तारों का यार हूँ मैं   तुलसी का रघुबीर,मीरा का निश्छल प्यार हूँ मैं शंकर की कोई प्रतिमा या निर्गुण शिव जग का आधार हूँ मैं रणधीर समर में अडिग खड़ा वीरता की भरमार हूँ मैं रग रग में करता जैसा पौरुष का संचार हूँ मैं नरसी भगत सा प्रेमी हूँ,भक्ति का अनुपम सार हूँ मैं  सभी संवेदनों से भरा, खुद में ही संसार हूँ मैं -रजत द्विवेदी